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________________ ११४ मरुगुजर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अन्त -श्री कल्याण नागोरी गच्छ पती रे, सिष रायसिंध रिषिराय, सिष सोभाकर दीपै खेतसी रे, चूहड़ सिख सुखदाय । तस चरणांबुज सेवक खेमो भणइ रे कल्याणपुर सुखकार, सतैरह सइ पैतालइ सुगुरु गुण गायन इ रे सफल करऊअवतार। इससे स्पष्ट होता है कि मुनि खेम नागौरी तपागच्छ के रायसिंह>खेत्रसिंह या खेतसी के शिष्य हैं। यह रचना खेता या खेतसी • की नहीं है। खेतसी रचनाकार खेम के गुरु थे जो लोकागच्छीय खेतसी (दामोदर शिष्य) से भिन्न थे और खरतरगच्छीय (दयावल्लभ शिष्य) खेतल या खेतसी से भी भिन्न थे । उपरोक्त अवतरण में 'हड़च सिख सुखदाय' के चूहड़ शब्द से शायद नाहटा जी को भ्रम हुआ है। यह चहड़ सिख का विशेषण है न कि व्यक्तिवाजक संज्ञा । अनाथी कवि का प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है-- वंदिय वीर जिणोष जगीस, नित प्रणमुं तस गौतम सीस, प्रणमुं सुगुरु कंठ नितसेव, जिण उपकार कीयो गुरुदेव । इषुकार सिद्ध चौपाई ‘१७४७ उदयपुर, चार ढाल) उत्तराध्ययन पर आधारित है। उत्तराध्ययन चवदभइ, भिन्न छ अधिकार, अलप अकल गुण छे छणा कहूँ बात अणुसार । अंतिम पंक्तियाँ धुर च्यारे ढाल भवां तणी, इषुकारी सिद्ध थी अधिकार, च्यार ढाल संयम तणी, गुण गाया सूत्र अणुसार। सतरै सैतालै सभे, उदयापुर मझार, मुनी खेम भणे सिद्धांत ना, गुणमाया कोड़ि कल्याण । सोलसतवादी का आदि ब्रह्मचारी चूड़ामणी, जिनशासन सिणगार हो, ब्रह्म सतवादी सोले तणा गुण गाथां भवपार हो ।' - खेमचन्द--तपागच्छीय चन्द्रशाखा के मुक्तिचन्द्र आपके गुरु थे। इन्होंने 'गुणमाला चौपई' की रचना सं० १७६१ नागरदेश में की। १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५९१-५९२ भाग ३ पृ० १२८२, १३३६-३७ प्र० सं०, भाग ५ पृ० ४५-४७ न् ०सं०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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