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खेतक खेताक अथवा खेता
रचनाकाल - संवत १७ वतीस में किधा बैसाख मास,
चतुर तणा मन रिझीये, सांभलता से सहि पोहचे आस ।' इसमें धन्ना के पुन्यवंत चरित्र का गान किया गया है । श्री देसाई ने लोकागच्छीय खेतो या खेतसी के दामोदर का शिष्य और अनाथी मुनि नी ढाल (सं०, १७४५) का कर्त्ता बताया था । ' परन्तु यह सूचना गलत लगती है। नवीन संस्करण ( जैन गुर्जर कवियो ) के संपादक ने बताया है कि उनका नाम खेम था, वे नागौरी तपागच्छ के साधु थे । अतः खेतसी से उनका कोई संबंध नहीं है । अतः खेम का विवरण अलग से दिया जायेगा । इस प्रकार कम से कम तीन खेतसी या खेताक का पता निश्चित रूप से चलता है जिनकी रचनाओं का यथा प्राप्त विवरण प्रस्तुत किया गया है ।
खेम-नागौरी तपागच्छ (अहिपुर) रायसिंह > खेत्रसिंह या खेतसी के शिष्य थे । इन्होंने अनाथी ऋषि संधि अथवा ढाल अथवा संज्झाय की रचना सं० १७४५ कल्याणपुर में की थी । इसके अलावा इषुकार सिद्ध चौपई, सोलसत वादी, भृगापुत्र संज्झाय भी इनकी प्राप्त रचनायें हैं ।" नाहटा ( अगरचन्द) ने इन्हें चूहड़ का शिष्य बताया है, शेष विवरण पूर्ववत् है । खेम ने अपनी रचनाओं में अपने को खेतसी का शिष्य बताया है । सोलसतवादी ( १९ बूडा मेड़ता ) के अन्त में कवि ने लिखा है
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सोल सती गुण गाइया, मेड़ता नगर मझार हो, ब्रह्म । अहिपुर गच्छ मुनि खेतसी शिष्य खेम महासुखगार हो । इसी प्रकार मृगापुत्र संज्झाय में भी वह कहता है-गछ नागोरी दीपता गुरु खेमसिंह गुणधार हो, मुनि खेम भणे कर जोड़ने तिकरया सुधा प्रमाण हो । उद्धरणों से स्पष्ट होता है कि मुनि खेमही अनाथी झबि संधि के भी रचनाकार हैं यथा --
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई जैन गुर्जर कविभो भाग २ पृ० २८६, भाग ३ पृ० १२८२ प्र० सं० और भाग ५ पृ० १ न० सं० ।
२. श्री अगरचन्द नाहटा - परंपरा पृ० ११४
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