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मरुगुर्जर हिन्दी जैन सहित्य का बृहद् इतिहास नाम खेतल, खेताक, खेता, (खेतो) खेतसी आदि मिलता है। पता नहीं खेतसी और खेता भिन्न हैं या खेतल, खेताक आदि एक ही हैं। कवि ने गजलों में अपना नाम खेतल या खेताक ही दिया है। जैन गुर्जर कवियों के नवीन संस्करण में खेता या खेताक नाम ही दिया गया है। कवि खड़ी बोली, व्रज और मरुगुर्जर भाषाओं में रचनाक्षम था। उसकी नवीन उद्भावनाशक्ति और नव-नव काव्य प्रयोग की क्षमता भी प्रशंसनीय है।
नन्दी सूची के अनुसार इनका मूल नाम खेतसी ही था। इनका दीक्षा नाम दयासुंदर था। इन्होंने सं० १७४१ फाल्गुन वदी ७ रविवार को जिनचंद सूरि से दीक्षा ली थी। ये अमरसिंह द्वितीय (सं० १७५५६७) के समसामयिक थे। जैनयती गणवर्णन का छन्द उदाहरणार्थ प्रस्तुत है--- केइतो समस्त न्याय ग्रंथ में दुरुस्त देखें,
फारसी में रस्त गुस्त पूजे छत्रपती है । किस्त करें तप की प्रशस्त धरै योग ध्यान,
__हस्त के बिलोकिवे कं सामुद्रिक मस्त हैं । पूज के गृहस्त के वस्त्र के जु ग्राहक है,
चुस्त हैं कला में, हस्त करामात छती हैं। खेतसी कहत षट्दर्शन में खबरदार,
जैन में जबरजस्त ऐसे मस्त जती हैं। खेतसी नामक कई कवियों में एक साई शाखा के चारण कवि भी थे। जिन्होंने जोधपुर के राजा अभयसिंह के आश्रय में 'भाषा भारथ' की रचना सं० १७८० में की थी। इसकी भाषा डिंगल है। ये अच्छे विद्वान् थे। कविता में ये अपना नाम 'सीह' देते थे। दसरे खेतसी दामोदर के शिष्य थे, उन्होंने 'धन्नारास' की रचना की है। धन्नारास सं० १७३२ वैराट गढ़ मेवाड़ में रचा गया। श्री नाहटा ने कवि का नाम 'खेता' बताया है। इसका आदि देखिये ---
प्रथम नमुं प्रभू पास जिण पोहवि मांहि प्रसिद्ध । इन्द्र पदमावति पुरवें नामें करें नवनिधि ।
१. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृ० २६० । २. अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० ११३ ।
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