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________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास संवत सतरइ सइ अठतालइ, पोस वदइ दसमी दिनइ, अ थइअ पूरी अति सनूरी कथा कविनइ सुखकरी । नगर मनोहर नवलखी देहरासर सुखकार, शांति जिणेसिर सोलमो सुरतरु नइ अवतार ।' वनराजर्षि चौपइ (३९ ढाल सं० १७५० सं० आषाढ़ शुक्ल १५ भटनेर) आदि--आदि जगेसर आदि देव चोवीसे जिणचन्द, प्रणम् ते दिन दिन प्रतें सहजीवां सूखकन्द । भावस्तुति पूजा थकी राजलह्यो बनराज; ते सम्बन्ध इहां हिवे, हुं कहिस्यू हितकाज । रचनाकाल -- संवत सतरे सइ पचासे समे रे, आषाढ़ मास उदार। अजुआली रे पूनम पूरी थई रे, चउपइ सुखकार। नगर भलो रे भटनेर बखांणी ओ रे, नगरां मांहि प्रधान । श्रावक सुखी सखरा जिहाँ रे, धरें सदा ध्रमध्यान । इहाँ चोमासे रे आवी कीधी चउपइ रे, श्री जिनकुशल पसाय । इहाँ ते थूम विराजइ सासतउ रे, कुशललाभ सुखदाय । कुशलविनय -ये क्षेमशाखा (खरतर०) के रत्नवल्लभ के शिष्य यशोवर्द्धन के शिष्य थे। इन्होंने नेमिराजुल सिलोको और राणकपुर स्तवन सं० १७५४ में बनाया। श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने नेमिराजुल शलोको का रचनाकाल सं० १७५९.आषाढ़ शुक्ल ३ बताया है। इन रचनाओं का कोई उद्धरण नहीं प्राप्त हआ इसलिए 'त्रैलोक्य दीपक काव्य' (सं० १८१२) के रचयिता कुशल विजय और प्रस्तुत कुशल विनय एक ही हैं या दो व्यक्ति और कवि हैं यह भी निश्चय १. मोहनलाल दलीचंद देसाई-जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १३३९-४२ और भाग ५ पृ० ६३-६६ (न० सं०)। २. वही ३. अगरचन्द नाहटा--परंपरा पृ० १०२ । ४. मोहनलाल दली चन्द देसाई--जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १४०४ (प्र०सं०) और भाग ३ पृ० १५२४ (प्र० सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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