SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुशलधीर द्वितीय खण्ड में भोज के दान, विद्या और यश की प्रशस्ति वणित है। तृतीय खण्ड में पूर्वभव कथन, परकाय प्रवेश और विद्यासिद्धि का वर्णन है। चतुर्थ खण्ड में सत्यवती प्रतिज्ञा कथन और देवराज पुत्र जन्म कथन है । पंचम खण्ड में भोजराज की कथा का उपसंहार किया गया है और रचनाकाल इस प्रकार कहा गया है -- संवत सतरैसे गुणत्रीस, माह वद तेरस दीसे, पंचम खंड थयौ इहां पूरौ, सोझित नगर सनूरो रे । इस रचना में ऐतिहासिक महत्त्व की पर्याप्त सूचनाएं हैं। लीलावती रास-(सं० १७२८ सोजत) आदि-आदीसर समरि नै प्रणमी सद्गुरु पाय । सती चरित कहिसुं सुपरि, सुणज्यो सहुचित्तलाय । इसमें लीलावती के सतीत्व का महत्व बताया गया है । रचनाकाल आगे दिया जा रहा है संवत वसू भुज भोयण सोजित नगर मझार । रास रच्यो रंगई करी अ, श्री संघनइ सुषकार ॥' कुशललाभ (वाचक).....खरतरगच्छीय जिनमाणिक्य >कल्याणधीर>कल्याण लाभ> कुशल धीर के शिष्य थे। ये हिन्दी मरुगुर्जर के प्रसिद्ध कवि हैं। इनकी रचनाओं ने धर्मबुद्धि चौपइ सं० १७४८ नवलखी, गुणसुंदरी चौपइ १७४८, वनराजर्षि चौपइ १७५०, भटनेर, मल्लिनाथ स्तव १७५६ (४२ गाथा) जैसलमेर, आदि प्रमुख हैं जिनका संक्षिप्त वर्णन किया जा रहा है --- धर्मबुद्धि चौपइ (३५ ढाल सं० १७४८ पोष कृष्ण १०) आदि -आदि चरण प्रणमी करी, शांतिनम मुख चंद। नेमनाथ मन में धरी, प्रणमुंपास जिणंद । २ इसमें उपरोक्त गुरु परंपरा दी गई है। यह रचना कुशल लाभ ने अपने शिष्यों कुशल सुंदर और हीर सुंदर के आग्रह पर लिखी थी, स्थान और रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है - १. मोहन लाल दलीचंद देसाई ---जैन गुर्जर कवियो भाग ३ पृ० १२६६ ६७ (प्र० सं०)। २. अमरचन्द नाहटा--परंपरा पृ० १०२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy