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________________ कुशल जानकारी थी। आप काव्यशास्त्र और पिंगलशास्त्र के भी पंडित थे, अर्थात् आप रीतिकालीन आचार्य कवियों की व्रजभाषा काव्य परंपरा के विद्वान् थे। लखपतमंजरी नाम माला और अन्य रचनायें इन्होंने अपने काव्यगुरु कनककुशल के साथ सृजन सहयोग पूर्वक रचा था। इनकी अन्य रचनायें पारसति (पारसात) नाममाला, गौड़पिगल, लखपति स्वर्ग प्राति समय, महाराव लखपत दुवावैत, मातानो छंद अथवा ईश्वरी छंद आदि हैं। लखपतिजससिंधु काव्यप्रकाश पर आधारित रचना है। इसमें महाराव के शौर्य एवं ऐश्वर्य का वर्णन भी किया गया है, यथा . कछपति देसल राउ कै, तखत तेज बलबीर । महाराव लखपति मरद, कुंअर कोटि कोटीर । बड़े कोट किल्ला बड़े, बड़ी तोप विकराल । बड़ी रौंस चहुं ओरबल, जबर बड़ी जंजाल ।' कुशलधीर - ये खरतरगच्छ के आचार्य जिनमाणिक्य सूरि की परम्परा में कल्याणधीर के प्रशिष्य और वाचक कल्याण लाभ के शिष्य थे। आप कवि तो थे ही, अच्छे भाषा टीकाकार भी थे। सं० १६९६ में ही इन्होंने कृष्णवेलि का बालावबोध भावसिंह के आग्रह पर भाषा टीका के रूप में लिखा था। आप १७वीं शती के अन्तिम दशक से लेकर १८वीं शती पूर्वार्द्ध तक रचनाशील रहे। आपके शिष्य प्रसिद्ध कवि कुशललाभ थे। उनके आग्रह पर इन्होंने 'शीलवती रास' सं० १७२२ साँचोर में रचा था। इनकी अन्य प्राप्त रचनाओं में लीलावती रास (सं० १७२८, सोजत) प्रमुख है जिसे इन्होंने अपने दूसरे शिष्य धर्मसागर के आग्रह पर लिखा था। भोज चौपई सं० १७२९ सोजत, राजर्षि कृत कर्म चौपई १७२८ सोजत, चौबीसी सं० १७२९ सोजत, कुशलसूरि गीत (गाथा २१) आदि इनकी अन्य रचनायें उल्लेखनीय हैं। इनकी सर्वप्रथम प्राप्त रचना 'उद्यम कर्म संवाद' सं० १६९९ की है जो किशनगढ़ में श्रावक सच्चीदास के आग्रह पर लिखी गई थी। इसके दो दशक बाद से इनकी रचनायें १८वीं शती में रचित १. कुवरचन्द्रप्रकाश सिंह-भज ( कच्छ ) की ब्रजभाषा पाठशाला पृ० ३१; डॉ० हरीश--जैन गुर्जर कविओ की हिन्दी क० को देन पृ० १७३१७५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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