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________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सती न सीता सारखी, पती न राम समान । जती न जंबू सारखो, गती न मुगति समान । सीता जी कुं रामजी जब दीनो बनवास । तब पूरब कृत करम कुं, याद करे अरदास । इसमें जैन मतानुसार पूर्वभव के कर्म का प्रभाव सीता बनवास के रूप में प्रकट किया गया है। इस आलोयणा की कुछ अन्तिम पंक्तियाँ कवि के गच्छ और गुरु का परिचय देती है, यथा-- नागोरी गछ नायक नीको, श्री रामसिंघ जी सहगुरुजी को। शीष कहावे कुशल सुग्यानी, तिण आलोयणा करीय सुध्यानी। नहि विवेक तिर्यंच में मनुष्य मां हे सहुवात, मुगति मांहे सुख सासतां, केवल कुशल-कहात । इनकी दो और छोटी-छोटी रचनाओं का नामोल्लेख किया गया है उनमें एक है 'निंदानी संञ्झाय' और दूसरी है सीमंधर संञ्झाय (गाथा ७)। श्री देसाई ने जैन गुर्जर कवियों भाग २ में कवि का नाम कुशल सिंह दिया है पर कवि ने सर्वत्र अपना नाम कुशल ही दिया है इसलिए यहाँ इनका परिचय 'कुशल' नाम से ही दिया गया है। नागोरी गच्छ और लोंकागच्छ को लेकर जयंत कोठारी ने इन पर शंका उठाई है।' अगरचंद नाहटा ने इनका नाम कुशलसिंह लिखा है और दशार्णभद्र चौढालिया तथा संत कुमार चौढालिया का उल्लेख किया है तथा रामसिंह का शिष्य बताया है। ___कुवर कुशल वे भट्टार्क कनककुशल के शिष्य और प्रतापकुशल के प्रशिष्य थे। ये महाराव लखपत और उनके पुत्र द्वारा सम्मानित थे। इनके ग्रंथ इन दोनों को समर्पित हैं। इनका व्रजभाषा पर अच्छा अधिकार है और ये व्रजभाषा के प्रौढ़ कवि थे, साथ ही इन्हें संस्कृत, फारसी जैसी भाषाओं के अलावा संगीत आदि अन्य कलाओं की भी अच्छी १ मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ५ पृ० ३२२-३२३ (न० सं०)। २. अगरचन्द नाहटा--परंपरा पृ० ११४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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