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कीर्तिसुन्दर या कान्हजी
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कौतुक पचीसी सं० । ७६१ आषाढ़ में और चौबोली चौपाई सं० १७६२ थागलें नगर में रचित रचनायें हैं । इनकी एक कृति कथासंग्रह सम्बन्धी 'वाग्विलास संग्रह' भी प्राप्त है । इनकी भाषा पर राजस्थानी का प्रभाव अधिक प्रकट होता है ।
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कीसन ( कृष्णदास मुनि) - - आप लोकागच्छीय सिंघराज के शिष्य थे । आपने सं १७६७ आसो शुक्ल १० को कीसनबावनी या उपदेश बावनी की रचना की । (इनका परिचय किशनदास नाम से दिया जा चुका है ) देखिये किशनदास |
कुशल – लोंकागच्छ के रामसिंह आपके गुरु थे । इन्होंने दशार्णभद्र चोढालिउ, सनत् कुमार चोढालिउ ( १७८९ मेड़ता ) लघु साधु वंदना और सीता आलोयणा आदि रचनायें की । परिचय संक्षेप में प्रस्तुत है
दशार्णभद्रचोढालिउ (सं० १७८६, सोजत ) दशार्ण देश के राजा दशार्णभद्र के संयमब्रत पालन से सम्बन्धित है । प्रारम्भिक पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं
सारद समरुं मनरली समरुं सद्गुरु पाय । वचन अमीरस सारीखा, मुझ दीज्यो चित लाय । देस दसारण नो धणी दसारणभद्र नरिंद्र | संयम लीधो चुप सूं, जीतो सुरवर इद्रि !
रचनाकाल, स्थान तथा गुरुपरम्परा का परिचय इन पंक्तियों में दिया गया है
नगरभलो सुखदाय हो, सोजित सहर बखाणिये । गुण गाया भलै भांव सुं हो, संवत -सत्तर छयासिये । ' गछनायक गुणवंत महिमासागर सेवीयै,
रामसिंघ जी गछराय, कुशल सीस गुण गाइया ।
सीता आलोयणा भी इनकी प्रसिद्ध कृति है इसका मंगलाचरण इन पंक्तियों से प्रारम्भ हुआ है
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कविओ भाग २ पु० ५६०५६१, भाग ३ पृ० १४५३ - ५४ ( प्र० सं० ) ।
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