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________________ कीर्तिसुन्दर या कान्हजी ૮૨ कौतुक पचीसी सं० । ७६१ आषाढ़ में और चौबोली चौपाई सं० १७६२ थागलें नगर में रचित रचनायें हैं । इनकी एक कृति कथासंग्रह सम्बन्धी 'वाग्विलास संग्रह' भी प्राप्त है । इनकी भाषा पर राजस्थानी का प्रभाव अधिक प्रकट होता है । ง कीसन ( कृष्णदास मुनि) - - आप लोकागच्छीय सिंघराज के शिष्य थे । आपने सं १७६७ आसो शुक्ल १० को कीसनबावनी या उपदेश बावनी की रचना की । (इनका परिचय किशनदास नाम से दिया जा चुका है ) देखिये किशनदास | कुशल – लोंकागच्छ के रामसिंह आपके गुरु थे । इन्होंने दशार्णभद्र चोढालिउ, सनत् कुमार चोढालिउ ( १७८९ मेड़ता ) लघु साधु वंदना और सीता आलोयणा आदि रचनायें की । परिचय संक्षेप में प्रस्तुत है दशार्णभद्रचोढालिउ (सं० १७८६, सोजत ) दशार्ण देश के राजा दशार्णभद्र के संयमब्रत पालन से सम्बन्धित है । प्रारम्भिक पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं सारद समरुं मनरली समरुं सद्गुरु पाय । वचन अमीरस सारीखा, मुझ दीज्यो चित लाय । देस दसारण नो धणी दसारणभद्र नरिंद्र | संयम लीधो चुप सूं, जीतो सुरवर इद्रि ! रचनाकाल, स्थान तथा गुरुपरम्परा का परिचय इन पंक्तियों में दिया गया है नगरभलो सुखदाय हो, सोजित सहर बखाणिये । गुण गाया भलै भांव सुं हो, संवत -सत्तर छयासिये । ' गछनायक गुणवंत महिमासागर सेवीयै, रामसिंघ जी गछराय, कुशल सीस गुण गाइया । सीता आलोयणा भी इनकी प्रसिद्ध कृति है इसका मंगलाचरण इन पंक्तियों से प्रारम्भ हुआ है १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कविओ भाग २ पु० ५६०५६१, भाग ३ पृ० १४५३ - ५४ ( प्र० सं० ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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