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________________ XX मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आदि-वंदु श्री महावीर ना, पाय कमल धरि प्रेम, जिणरो शासन जाणीये, आगम भाख्या अम । करणी जिन मोटी करी, मुनी अवंती सुकुमाल, सूत्र तणे अनुसार सुं संबंध कहुं रसाल । रचनाकाल-संवत सतरे वरस सतावने, मेडता नगर मझार । चौमासे श्री जिनचंद सूरि जी, सहुगछ में सिरदार जग में । पाठक श्री ध्रमसी जी परगंडा, पंडित गुणे परधान । करी जोड त्यारे सिष कान्ह जी, धरिवा धमनो ध्यान । भाषा अनगढ़ है जैसे धर्म का ध्रम और धम प्रकट का परगडा आदि प्रयोग चिन्त्य हैं। मांडकरास ( सं० १७५७ मेड़ता) राजस्थान भारती अंक ३-४ में प्रकाशित है। अभयकुमारि पंचसाधुरास ( १२ ढाल सं० १७५९ जयतारण) आदि-जगगरु प्रणमं वीर जिन, अधिक भाव मन आणि । सुपसायै जिणरै सहूं, वंछित चढे प्रमाण । सहु सुबुधी सिर सेहरो अधिक कीया उपगार । कीरति अभयकुमार री सहुजाणै संसार । तसु संबंध संक्षेप सु अवर च्यार अणगार । शिव, सुब्रत, धन, जनक जु एहना कहुं अधिकार । रचनाकाल-संवत सतरै गुणसठे समें जयतारणपुर जाण, चौमासे श्री जिनचंद्र सूरि जी भट्टारक कुलभाण ।' इसमें गुरु परम्परा विस्तार से दी गई है । खरतरगच्छ की जिनभद्रसूरि शाखा के अन्तर्गत साधुकीति से लेकर साधुसुंदर, विमलकीर्ति, विजयहर्ष और धर्मवर्द्धन का वन्दन करके कहा है :-- विमलकीरति जगि विम्मलचंद, जयुं विजयहरख सुखदान । श्री धर्मवर्धन राजें सद्गुरु, पाठक सुगुण प्रधान । गुण साधांरा मन सुख गावता, सहु सुख लहीयें सार, कीरति सुन्दर हवै कान्हजी, संघ उदय सुखकार । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १४०४-६ (प्र० सं०) और भाग ५ पृ० १८२-८४ (न० सं०)। २. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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