SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाषा में जी, ते, तौ आदि भरती के शब्द भाषा की शिथिलता के द्योतक हैं। इसमें काव्यत्व अति सामान्य कोटि का है। रचनाकाल और स्थान का विवरण इस प्रकार है सोलासै सत्ताणवै मासि वैसाखि, पंचमी तिथि सभ उजल पाखि । नाम नक्षत्र आद्रा भलो, बार वृहस्पति अधिक प्रधान । अहो देस को राजा जी जाति राठौड़, सकलजी छत्रिया के सिरमोड । नाम जसवंतसिंघ तसु तणो, तास आनन्दपुर नगर प्रधान ।' कमलकीति-आप खरतरगच्छीय कल्याणलाभ के शिष्य थे। आपने सं० १६७६ विजयदशमी को हाजीखान में 'महिपाल चौपइ'२ लिखी। इस रचना का और अधिक विवरण उपलब्ध नहीं हो पाया। कमलरत्न ---आपका एक गीत 'ऐतिहासिक जैन गुर्जर काव्यसंग्रह' में 'जिनरंगसूरि गीतानि' शीर्षक के अन्तर्गत तृतीय स्थान पर संकलित है। इस गीत में कवि ने बताया है कि बादशाह शाहजहाँ ने सूरि जी का सम्मान किया। जिनरंग सूरि की रचनाओं में सौभाग्यपंचमी चौपड़ और नवतत्वबालावबोध आदि प्रसिद्ध हैं । आपसे ही खरतरगच्छ की रंगविजय शाखा अलग हुई थी। इसकी गद्दी लखनऊ में है। इस गीत में कुल १५ कड़ी हैं । इसकी अन्तिम कड़ी इस प्रकार है : 'कमलरत्न इम बीनवे, मुझ आज अधिक आणंद, चिरजीवो गुरु ऐ सही, जां लगि धू रवि चांद । १५।३ आप १७वीं शती के अन्तिम वर्षों से लेकर १८वीं शती तक रचनाये करते रहे । प्रस्तुत गीत १७वीं शती के अन्तिम समय में आने के कारण यहाँ प्रस्तुत किया गया है। ___ कनकलाभ-आप जिनचन्दसूरि की परम्परा में उपाध्याय समयराज के प्रशिष्य और अभयसुन्दर के शिष्य थे। इन्होंने प्रायः गद्य रचनायें की हैं। उत्तराध्ययन बालावबोध और पूजाष्टकवार्तिक (अपूर्ण) आपकी प्राप्त रचनायें हैं। इन रचनाओं के उद्धरण नहीं उपलब्ध हो सके हैं।" १. डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल-राजस्थान के जैन संत पृ० २०२-२०६ । २. जैन गुर्जर कविओ (प्राचीन संस्करण) भाग ३ खंड १ पृ० ९८४ । ३. ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह-जिनरंगसूरि गीतानि, तृतीय गीत । ४. अगरचन्द नाहटा--परम्परा पृ० ८६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy