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________________ ७७. कनकसौभाग्य - कपूरचंद जिसमें विजयसेन के पट्टधर विजयदेव का भी विवरण दिया गया है। इसका प्रथम छन्द निम्नाङ्कित है-- 'वीणा वेगि बजावती गावती जिन पद रंगि, कासमीरपुर मंडणी, कुंकम वरणइ अंगि।' रचनाकाल--संवत सोल चउसिठा वरषि, महा सुदी अकादशीसारजी, गुरु गुण गाया थइ मतिसार, सुणजे सह नर-नारि जी। श्री विजइसेन सूरीसर पाटि विजइदेव गणधार, कनक सौभाग्य प्रभुध्यान धरतां लहीइ सुख अपार जी।' (ब्रह्म) कपूरचंद -आप मुनि गुणचन्द्र के शिष्य थे। इनके कुछ हिन्दी पदों के अतिरिक्त 'पार्श्वनाथरास' नामक रचना का पता चला है। इस रास में कवि ने अपनी गुरु परम्परा के साथ ही आनंदपुर का वर्णन किया है जिसके तत्कालीन राजा जसवंत सिंह राठौर थे। वहीं के पार्श्वनाथ मन्दिर की प्रशंसा में प्रस्तुत रचना की गई है। इसमें १६६ पद्य हैं। भाषा राजस्थानी प्रधान मगर्जर है। रास में पार्श्वनाथ के जीवन का वर्णन पद्यकथा रूप में वर्णित है । उनके जन्मोत्सव का वर्णन देखिये-- ___ अहो नगर में लोक अति करे जी उछाह, खर्चे जी द्रव्य मनि अधिक समाह। घरि-घरि मंगल अति घणा, घरि-घरि गावेजी गीत सुचार । सब जन अधिक अनंदिया, धनि जननी तसु जिण अवतार ।१२४॥ तापस कमठ को बालक पार्श्वनाथ लकड़ी जलाने से मना करते हैं क्योंकि उसके कोटर में साँप का जोड़ा जल रहा था। कवि ने इस प्रसंग का वर्णन अति सुगम शैली और सरल भाषा में इस प्रकार किया है सुणि रे अज्ञानी हो तापसी, बलै छै जी काष्ट माझ सर्पणी सर्प, ते तो जी भेद जाणो नहीं, करयो जी वृथा मन में तुम्ह दर्प। करि अति कोप कर ग्रह्योजी कुठार, काठ तहाँ छेदिकीयो तिणछार सर्पिणी सर्प तहाँ निसर्या, अर्द्धजी दग्ध तहाँ भयो जी सरीर । १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ खंड २ पृ० १५१६ । २. डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल- राजस्थान के जैन संत पृ० २०२-२०६ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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