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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहन् इतिहास सिवमंदिर चडिवानइ काजि , गुण ठाणा वोल्या जिणराजि,
चडती पयडी नइपगु धरइ, तऊ सइ हथि सिवरमणी वरइ।' रचनाकाल-संवत सोलह सइवरस इकतीसइ ओ किद्ध
अस्सोजह सुदि दसमि दिने, मणयजनम फलसिद्ध । जिनपालित जिनरक्षित रास (गाथा ५२ सं० १६३२ नागौर) का आदि इस प्रकार है
सहगुरु पई पणमी करी, सुइदेवी मनि ध्याइ,
जिन पालक रक्षत तणउ, चरित रचुसुभ भाई। अन्त-संक्षेप मात्रइ छंदवंधइ, अरथ जे सद्गुरु लह्या,
ओ रास सुणतां अनइ भणतां कनकसोम आणंद । आषाढ़भूति सञ्झाय (अथवा धमाल, अथवा चरित्र या रास सं० १६३८ विजयादशमी, खंभात) का रचना काल इस प्रकार बताया गया है
संवत सोलइ अठतीसइ दिन विजयदसमि सुजगीसइ,
कहि कनकसोम सुविचार, सब श्री संघसुसुषकार । हरिकेशी संधि (सं० १६४० वैराट) इसमें हरिकेशी ऋषि के पवित्र चरित्र का गुणगान किया गया है । इसके अन्त में कवि ने लिखा है--
जे भणहि गुणहि बखाण वाचहि मे चरित रसाल, कहि कनकसोम मुनि धन धन्नते,
फलइ अंतरीग हो तिहां सुख रसाल। रचना में गुरुपरम्परा एवं रचनाकाल का विवरण दिया गया है। आर्द्रकुमार चौपाई अथवा धमाल (४८ कड़ी सं० १६४४ श्रावण, अमरसर) आदि-सकल जैनगरु प्रणम् पाया, वागदेव मुझ करहु पसाया,
गाइसु आद्रकुमर रिषिराया, जिणि मुनि पाली प्रवचन माया।११ रचनाकाल--संवत सोल चमाला श्रावण धुरइ, नयरि अमरसरिसार,
कनकसोम आणंद भगतिभरइ, भणतां सब सुखकार । १. जैन गुर्जर कविओ (प्रथम संस्करण) भाग ३ खंड २ पृ० १५१४ । २. वही (नवीन संस्करण) भाग २ पृ० १४७ । ३. वही (नवीन संस्करण) भाग २ पृ० १४९ ।
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