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कनकसोस
थावच्चा सुकोशलग चौपाई गा० १२२ सं० १६५५ नागौर में लिखी गई। नेमिफागु (२० गाथा) रणथंभौर में लिखी गई। इसकी प्रारम्भिक दो पंक्तियाँ--
श्री सिवादेवी नंदन नेमि, भावइ पदपंकज पणमेवि,
गाइसि जदुपति ब्रह्मचारी, हरखित सुणऊ भविक नरनारि । इसके अलावा श्री पूज्यभाषगीत सं० १६२८ में जिनचन्दसूरि के विषय में लिखित है, नववाडी गीत, आज्ञासञ्झायगीत आदि छोटी कृतियाँ भी उपलब्ध हैं। इनकी सबसे प्रसिद्ध रचना मंगलकलश, चौपई या फागु हैं। यह प्राचीन फागु संग्रह में प्रकाशित है। १४२ गाथा की यह प्रसिद्ध रचना सं० १६४९ में मुलतान में लिखी गई है। मंगलकलश फाग या चौपई में मंगलकलश का प्रसिद्ध जैन कथानक लिया गया है। मंगलकलश उज्जयिनी के श्रेष्ठी धर्मदत्त और उनकी पत्नी सत्यभामा का पुत्र था। चंपापुरी के राजा की कन्या त्रैलोक्य-.. सुन्दरी की शादी उसके मंत्री पूत्र (जो कुष्ठ रोगी था) से निश्चित हुआ। मंत्री ने देवताओं की सहायता से मंगलकलश को उठवा लिया और त्रैलोक्यसुन्दरी से शादी के लिए उसे तैयार किया। मंगलकलश तो शादी करके उज्जयिनी चला गया और इधर रात्रि में अपने पलंग पर कुष्ठी मंत्री पुत्र को देखकर राजकुमारी बड़ी दुखी हुई और रात्रि में ही नैहर चली गई। वहाँ से राजकुमारी मंगलकलश का पता लगाकर उज्जयिनी पहुँची और वहाँ मंगलकलश से उसकी पुनः शादी हुई । अन्त में जयसिंह सूरि के उपदेश से उसे पूर्व भव का ज्ञान और वैराग्य हुआ। अन्ततः मंगलकलश ने दीक्षा ली और संयम पालन करके निर्वाण प्राप्त किया।
इसमें शृङ्गार और शान्तरस का अच्छा परिपाक हुआ है। त्रैलोक्यसुन्दरी की सुन्दरता का वर्णन करता हुआ कवि लिखता है
मृगलोयन मुख चंद समान, नासा कीर कोकिला वाणी, उज्जल दसन अधर अतिरंग, जघन वयण थन पीन उत्तंग ।'
भाषा में मुहावरों का अच्छा प्रयोग किया गया है जैसे 'आगइ नदी पाछइ बाघलउ' इत्यादि। रचना का प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है
'सासणदेवीय सामिणी अ, मुझ सानिधि कीजइ,
पुण्य तणा फल गाइय सुणतां मन रीझइ ।' १. प्राचीन फागु संग्रह, पृ० १५४ ।
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