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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कनकसुन्दर II--श्री देसाई ने पहले तो 'हरिश्चन्द्र राजा रास' का कर्ता भूल से कनककुशल को बताया था बाद में उन्होंने इसके कर्ता का नाम कनकसुन्दर बताया है। किन्तु ये कनकसुन्दर भावडगच्छीय महेश उपाध्याय के शिष्य बताये गये हैं और इन्होंने यह रचना सोजत में की है। इसलिए ये दूसरे कनकसुन्दर हैं। प्राप्त सूचनाओं के आधार पर उनका विवरण यहाँ दिया जा रहा है। आप भावडगच्छ के उपाध्याय महेश जी के शिष्य थे। इन्होंने सोजत में हरिश्चन्द्र ( तारालोचनी) रास या हरिश्चन्द्र राजानो रास की रचना श्रावण सु० ५ सं० १६९७ में की। यह रचना मरुप्रदेश के सोजत नगर में की गई, अतः इसकी भाषा पर मरु या राजस्थानी प्रभाव अधिक है, उदाहरणार्थ इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ देखिए पास जिनेसर पाय नमी, थंभणपूर थिरवास । जुग जुग मांहे दीपतो, पूरे वांछित आस । आदि लखे कुण अहनी वर्ष इग्यारे लक्ष, वर्णत पश्चिम देवता, कीधी पूज प्रत्यक्ष ।' इसे 'मोहनवेली चौपाई भी कहते हैं। यह ३९ ढाल और ७८१ कड़ी की विस्तृत रचना है। इसमें मरुधर देश के महिपति यशवंत का उल्लेख है। गरु परम्परा भी दी गई है जिसके अनुसार आप साधु जी के प्रशिष्य थे। इस प्रबन्ध में श्री हरिश्चन्द्र और शान्तिनाथ के सम्बन्ध की कथा भी कही गई है श्री हरिश्चंद नरिंदनो शांतिनाथ संबंध, नवरस भेद जजुआ, ढाल सगूण चालीस । भावभेद बहुभांत ना विधि शु विश्वावीस, संवत सोल सत्ताणवे, शुद्धपक्ष श्रावण मास, पंचमीतिथि पूरो हुउ, श्री हरिचंद नो रास । २ इस ग्रन्थ को भीमसिंह माणिक और सवाई भाई रायचन्द ने प्रकाशित किया है। नाना ग्रन्थागारों में इनकी अनेक प्रतियां भी १. जैन गुर्जर कविओ (नगीन संस्करण) भाग ३ पृ० ३२९ । २. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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