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________________ कनकसुन्दर रचनाकाल --'विक्रम संवत नसिपति कला रस लोचन स्त्रोज्यो निर्मला, वरजाजुलि रह्या चुमासि, रच्यु रास मे मनि उल्हासि ।' गुणधर्म कनकवती प्रबन्ध–यह रचना सं० १६६३ से पूर्व लिखी जा चुकी थी। क्योंकि इसकी रामामाहावजी द्वारा लिखित प्रति सं० १६६३ कार्तिक वदी १४ की उपलब्ध है। इसमें संसार की असारता और विषय विकार की व्यर्थता पर प्रकाश डाला गया है । यथा 'इम सुणी प्राणी चित्त अणी, विषय छंदइ वाड, परमाद पांचइ दूरि कीजई, दीजइ नगर कपाट ।' अथवा इम जाणी संसार असार, गिरुया मुकइ विषय विकार । बड़तपगछि गोयम अवतार, श्री धनरत्न हुआ संसारि । आगे धनरत्न, सुररत्न, देवरत्न और विद्यारत्न का स्मरण करते हुए कवि अपने को विद्यारत्न का अन्तेवासी शिष्य बताता है. अन्तेवासी तेहनो मुख्य, कनक सुन्दर नामे छे शिष्य । इसमें शांतिजिनेश्वर का चरित्र है 'शांति जिणेस्वर तणु चरित्र कथा प्रबंधि करी विचित्र'। सगालसाहरास-यह ४८६ कड़ी की रचना है। इसे कवि ने सं० १६६७ वैशाख वदी १२ को पूर्ण किया था। इससे पूर्व किसी वासुकवि ने सगालसाह चूपई लिखी थी। दोनों में काफी साम्य है । नर सिंह राव ने सगाल का अर्थ शृङ्गाल किया था जिसे श्री देसाई जी अशुद्ध मानते हैं। वे सगाल का अर्थ ऐसे सेठ या साहु को मानते हैं जिसके यहाँ हमेशा सुकाल हो, दुष्काल कभी न हो। इसे व्रजराय देसाई ने सम्पादित-प्रकाशित किया है। इसके प्रारम्भ की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं 'सकल सुरपति सकल सुरपति तमई जस पाय, चुवीसइ तिथेसरु, तास नाम हुं चित्ति ध्याउं ।' अन्त में लिखा है-'अणि अठसठि सकल तीरथ करइ जे फल होइ, साह श्री सगाल केरु रास सुणता सोइ ।' इसमें रचनाकाल बताया गया है१. जैन गुर्जर कविओ (नवीन संस्करण) भाग ३ पृ० १३-१७ तक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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