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वाचक कनककीर्ति
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रतनजडित कोसीसा सोहइ, तीनभुवन जनता मनमोहइ, जादवकुल अरविंद दिनेसर, राज करइ तिहां कृष्ण नरेसर ।"
कवि कहता है कि नेमिनाथ के गुणों का वर्णन मेरे लिए वैसे ही असंभव है जैसे पक्षी का गगन की थाह लगाना या व्यक्ति द्वारा अपनी छाया पकड़ना मुश्किल है। कवि नेमि-राजुल की वंदना करता है
नेमनाथ नां गुण गावतां पामीयइ परमाणंद, असुभ करम दूरइ टलइ, नासइ दुरगति दंद । धनधन राजमती सती कर जोड़ करूं प्रणाम,
रथनेम मारग आणीयउ न्याय रह्योजगि नाम । रचनाकाल — “संवत सोलह बाणवइ, सुदि माह पांचम जांण,
वड़नगर बीकानेर मई, रास चढ्यउ परमाण।" इसके बाद कवि ने जिनदत्तसूरि से लेकर जिनचन्द्रसूरि और जिनसिंहसूरि तक की गुरुपरम्परा का सादर स्मरण किया है। जिनचन्द्रसूरि और अकबर की भेंट का उल्लेख इन पंक्तियों में द्रष्टव्य है
"अनुक्रमइ पाटपरम्परा, जिनचन्दसूरि सुजाण पद दीयउ युगवर जेहनइ, अकबर नृप सुरताण । जिन टेक राखी जैनरी, जिनचंद सूर दयाल, जहांगीर भूपति रंजीयउ, षट् दरसन प्रतिपाल।"
जिनचंदसूरि सुरिंद जी, तसु नयनकमल सुसीस, तसुसीस जयमंदिर जयउ, पूरवइ मनह जगीस। तसु सीस पभणइ भावसु अ नेमरास रसाल,
कनककीरति वाचक कहइ, फलइ मनोरथ माल ।" दूसरी रचना 'द्रौपदीरास' (३९ ढाल सं० १६९३ वैशाख शु० १३ जैसलमेर) है। इसमें द्रौपदी के सतीत्व को तथा जैन दृष्टि से उसके चरित्र को चित्रित किया गया है । प्रारम्भिक पंक्तियाँ–धनधन शीलवती सती द्रूपदी, पांचे पांडव नारि,
___ शीलप्रभावें लहस्ये सासता, शिवपुरसुख अपार ।१। १. जैन गुर्जर कविओ (नवीन संस्करण) भाग ३ पृ० २९१-९६ ।
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