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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सिद्ध होते हैं । आणंदजी कल्याणजी भंडार में सुरक्षित 'हितशिक्षारास' की प्रति के नीचे इनकी २६ रचनाओं की सूची दी गई है। अन्यत्र उनकी ३०-३२ रचनाओं की सूची दी गई है । श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने उनकी प्रायः ४० रचनाओं का विवरण और उद्धरण आदि दिया है।
वाचक कनककीति-आप खरतरगच्छ के प्रसिद्ध आचार्य जिनचन्द्र सूरि की शिष्य परंपरा में नयनकमल के प्रशिष्य एवं जयमंदिर के शिष्य थे। आपने गद्य और पद्य दोनों में उत्तम साहित्य का निर्माण किया है। इनकी भाषा मरुगूर्जर (हिन्दी) है। आपने नेमिनाथरास और द्रौपदी रास के अलावा जिनराज स्तुति, श्रीपाल स्तुति और कर्मघंटावली नामक कृतियों का निर्माण किया है। आपकी लिखी हुई विनंती और पदसंग्रह भी प्राप्त हैं। श्री मो० द० देसाई ने आपकी रचना भरतचक्री का भी उल्लेख किया है किन्तु उसमें गुरुपरम्परा न होने के कारण यह निश्चय नहीं हो पाता है कि यह इन्हीं कनककीर्ति की कृति है, या अन्य किसी कनककीर्ति की। आपने 'तत्त्वार्थ श्रुतसागरी टीका' पर विस्तृत हिन्दी टीका और संस्कृत में मेघदूत पर टीका लिखी है। इससे स्पष्ट है कि आप संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती
और राजस्थानी भाषाओं के विद्वान् थे। इनकी रचनायें काव्यत्व की दष्टि से भी प्रौढ़ है। भाषा पर ढढारी बोली का प्रभाव देखा जाता है। कुछ गुर्जर प्रयोग जैसे 'है' के लिए 'छे' भी मिलता है।
कृति परिचय-नेमिनाथ रास १३ ढालों में सं० १६९२ माह शु० ५ बीकानेर में लिखा गया। इसमें नेमिनाथ-राजुल के मार्मिक आख्यान का आधार लिया गया है; अतः रचना सरस बन पड़ी है। इसका आदि पद्य है
सकल जैन गुरु प्रणमुपायां, श्रुतदेवी पदपंकज ध्या, श्री गुरुचरण कमल चित लावु, नेमकुमर जादव गुण गावु।
मनवंछित सुख संपति पावु।१। आगे कवि ने द्वारिका का मोहक वर्णन किया है यथा--
"सोरठ देस सदा सुखआगर, नारी पुरुष तणो वद्ध रागर, जिहां विमलाचल तीर्थराया, उज्जंत गिरि तीरथ मन भाया। द्वारवती नगरी नवरंगी, धनद नीपाई सुजन सुरंगी, कंचणमणमइ कोठ विराजइ, जिणि दीठां अलकापुर लाजइ।
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