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"ऋषभदास
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खंभात ) यह प्रकाशित और प्रसिद्ध कृति है । यह आनंदकाव्य महौ-धि मौक्तिक ५ में प्रकाशित है । इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है'सरसती भाषा भारती, त्रिपुरा सारद माय, हंसगामिनी ब्रह्म सुता प्रणमु तारा पाय ।'
इसमें कवि ने माँ सरस्वती से वाणी की उस शक्ति का वरदान माँगा है जो सिद्धसेन दिवाकर, श्री हर्ष, माघ, कालिदास और धनपाल आदि महाकवियों को प्राप्त हुआ था ताकि वह हीरविजय का गुणगान कर सके । रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है
दिशि आगलि लेइ इंद्रह धरो, कला सोय ते पाछल करो, कवण संवत्सर थाये वली, त्यारे रास कर्यो मन रली । ' (१६८५) उसके कई पाठान्तर मिलते हैं जैसे 'संवत सोल पंच्यासीओ जसें, आसो मास दसमी दिन तसे' इत्यादि ।
अभय कुमार रास - (१०१४ कड़ी, सं० १६८७ कार्तिक कृष्ण ९ गुरुवार, खंभात) ।
रोहणिया मुनि रास- - ( ३४५ कड़ी, सं० १६८८ पौष शुक्ल ७ गुरुवार, खंभात ) ।
प्रायः सभी रचनाओं को ऋषभदास ने गुरुवार को ही पूर्ण किया था । रोहणिया मुनिरास में १९-२० प्रकार की ढालों का प्रयोग किया गया है । इसका रचना काल - 'संवत दिग दिग रस भू माषु पोष मास तिहां सारो जी ।" वीरसेन रास (४४५ कड़ी के अलावा आदीश्वर या प्रथम तीर्थंकर ऋषभ पर कई रचनायें हैं- आदीश्वर आलोयणा अथवा विज्ञप्तिस्तव और आदीश्वर विवाहलो और शत्रुजय मण्डण श्री ऋषभदेव जिनस्तुति आदि । ऋषभदास ने प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव पर काफी स्तुति और स्तवन लिखा है । आदीश्वर आलोयणा ५७ कड़ी सं० १६६६ श्रावण शुक्ल २, खंभात में पूर्ण हुई थी । आदीश्वर विवाहलो या गुणबेली ६९ कड़ी की रचना है । स्थूलभद्र सञ्झाय और धूलेवा श्री केशरिया जी स्तव 'चैत्य आदि सञ्झायमाला भाग ३ पृ० ३६५ पर एकत्र प्रकाशित रचनायें हैं । इनकी अधिकतर कृतियाँ कहीं न कहीं प्रकाशित हो चुकी हैं। इनका मूल्यां करने पर ऋषभदेव १७वीं शताब्दी के अग्रगण्य कवियों में गिनने योग १. जैन गुर्जर कविओ, भाग ३ (द्वितीय संस्करण) पृ० ७३ ।
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