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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
इनके अलावा समयस्वरूपरास ७९१ कड़ी, देवगुरुस्वरूप रास ७८५ कड़ी; शत्रुंजय उद्धार रास; श्राद्धविधिरास; आर्द्रकुमार रास ९७ कड़ी; पुण्यप्रशंसा रास ३२८ कड़ी आदि विविध छोटी-बड़ी कृतियों का श्री मो० द० देसाई ने विवरण, उद्धरण दिया है । इनकी कुछ रचनाओं के कर्ता को लेकर अनेक शंकायें हैं जैसे नेमिदूत के कर्त्ता विक्रम को जिसे सांगण - पुत्र और ऋषभ का भाई कहा गया, अब उनका भाई नहीं माना जाता और इस रचना के कर्ता का प्रश्न अनिश्चित है । इसी प्रकार सुमित्ररास का कर्ता विजयसेनसूरि को बताया गया था लेकिन बाद में विजयसेनसूरि राज्ये ऋषभदेव कृत बताया गया है । नेमिनाथ नवरस और नेमिनाथस्तव एक ही कृति के दो नाम हैं पर कहीं-कहीं इन्हें दो कृतियों के रूप में दर्शाया गया है । इसी प्रकार स्थूलभद्र सञ्झाय का कर्ता कोई अन्य भी हो सकता है ।
हीरविजयसूरि से सम्बन्धित आपकी दो रचनायें प्रसिद्ध हैं, हीरविजयसूरि ना बारबोलनोरास और हीरविजयसूरि रास । प्रथम कृति २९४ कड़ी की है और इसकी रचना सं० १६८४ श्रावण कृष्ण २ गुरुवार को हुई, खरतरगच्छ और तपागच्छ में लम्बे समय से स्पर्द्धा चली आ रही थी । तपागच्छ के आचार्य विजयदानसूरि ने धर्मसागर कृत 'कुमतिकंद कुदाल' के विरोध में सातबोल नाम से सात आज्ञायें निकाली थी । हीरविजयसूरि ने सातबोल के ऊपर १२ बोल के नाम से १२ आज्ञायें जारी की । इस रास में वे ही १२ बोल दिए गये हैं । इसका आदि देखिये
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गउतम गणधर गुण स्तवं सारद तुझ आधार, बारबोल गुरु हीरना व्यवरी कहूं वीचार । बारबोल के बार मेध, कइबारइ आदीत्त,
बार उपांग अहनि कहु हीरवचन बहु वीत । बार बोल गुरु हीरना आराधइ नर जेह,
बारइ सरगनां सुख वलीं सही पामइ नर तेह | रचनाकाल -- संवत वेद दीग अंग नि चंद्र, श्रावण मास हुऊ आणंद, कृष्ण पखि हुइ दूतीआ सार, उत्तम सूर जगम्हा गुरुवार ।" हीरविजयसूरिरास - (सं० १६८५ आसो शुक्ल १० गुरुवार, १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ (द्वितीय संस्करण) पृ० २३-७९ ।
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