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________________ ऋषभदास यह रचना रायपसेणी और भगवती सूत्र के आधार पर की गई है। इसमें जीवतस्वामी जिणंद की पूजा का माहात्म्य बताया गया है। रचना काल इस प्रकार कहा गया है बाहुदिग् दरिसण नि चंद जूओ संवछर मान आनंदि, मास भलो वैशाख वखाणु वदि अग्यारस निरमल जाणु।' पूजाविधिरास--- (५६६ कड़ी, सं० १६८२ वैशाख शुक्ल ५, गुरुवार खंभात)। रचनाकाल संवत बाहु सिद्धि अंग चंद, शब्द आणतां रंग, वहइश्याख शुदिइ जल पंचमी, गुरुवारि मति हुइ समी। जोइयो मि पूजाविधिरास, ब्रह्म सुताई पूरी आस, भाषइ कविता ऋषभदास, सुणतां घरि कमला नो वास । कवि ने प्रायः सभी रचनाओं में अपने पिता संघवी सांगण, पोरवाल वंश और जन्म स्थान खंभात का अनिवार्य रूप से वर्णन किया है। इसलिए सम्बन्धित पंक्तियों को बार-बार दुहराने की आवश्यकता नहीं समझी गई, केवल रचनाकाल और दो चार अन्य पंक्तियाँ भाषा और काव्य शैली के उदाहरणार्थ उद्धत की जा रही हैं, अन्यथा विवरण के अति विस्तृत हो जाने का भय है जिसे स्थान की सीमा को देखते हुए संतुलित रखना परम आवश्यक है। श्रेणिकरास--(सात खण्ड, १८५१ कड़ी, सं० १६८२ आसो शुक्ल ५, गुरुवार, खंभात) मगध सम्राट बिम्बसार (श्रेणिक) और भगवान महावीर का सम्बन्ध विख्यात है। रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है 'संवत बाहु दीग दरिसण चंदइ मास आसो नरखोज आनंदि, ऊजली पांचमनि गुरुवारो श्रेणिक रासनुं कीध विस्तारो।' सं० १६८२ में ही हितशिक्षारास, जीवतस्वामीरास, पूजाविधिरास भी लिखे गये। ये चारों ही काफी बड़ी-बड़ी रचनायें हैं। आश्चर्य होता है कि एक वर्ष के भीतर इतने छंद कवि कैसे जोड़ लेता था ? कयवन्नारास २८४ कड़ी सं० १६८३; मल्लिनाथ रास २९५ कड़ी सं० १६८५ पौष शुक्ल १३ को लिखी अपेक्षाकृत छोटी-छोटी रचनायें हैं। १. जैन गुर्जर कवियो भाग ३. (द्वितीय संस्करण) पृ० २३-७९ २. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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