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ऋषभदास
कुमारपाल रास - ( ४६९९ कड़ी सं० १६७० भाद्र शुक्ल २ गुरु, खंभात)
आदि - सकल सिद्ध चरणें नमु नमु ते श्री भगवंत;
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नमु ते गणधर केवली, नमु ते मुनिवर संत, समरुं सरसती भगवती, समरां करे जे सार; हुं मूरष मति केलबु ते ताहारे आधार । रास में कवि ने अपने पूर्ववर्ती अनेक कवियों - लावण्य, लीबो, षीमो, हंसराज, वाछो, देपाल, माल, हेम, साधुहंस, समरो, सुरचन्द्र आदि का ससम्मान उल्लेख किया है । लेखक ने तपागच्छीय विद्वान् सोमसूरि का विशेष रूप से स्मरण किया है जिनका ग्रन्थ 'कुमारपाल' प्रस्तुत 'कुमारपालरास' का आधार है । इस रचना का ऐतिहासिक महत्त्व है क्योंकि इसमें जैनधर्म के उन्नायक गुजरात के प्रसिद्ध राजा कुमारपाल का चरित्र चित्रित है ।
रचनाकाल - "सोल संवत्सरि जाण वर्ष सीत्यरी,
भद्रवा सुदि सुभ बीजा सारी,
वार गुरु गुण भर्यो, राशि ऋषभइ कर्यो,
श्री गुरु साथ बहु बुद्धि विचारी । " "
इस रास के अंत में भी खंभात नगरी, संघवी सांगण का अन्य रासों की तरह वर्णन किया गया है । यह रास आनन्दकाव्यमहोदधि मौक्तिक आठ में प्रकाशित है ।
जीवविचारास - (५०२ कड़ी, सं० १६७६ आसो शुक्ल १५, खंभात ) आदि - सरस वचन द्यौ सारदा, तुं कवियण नी माय, तुं आवी मुझ मुख्य रमेय, मम चिंत्युं थाय । कवि ऋषभदेव का प्रायः वन्दन करता है यथा
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जिणें ध्यान मति निर्मली सफल हुइ अवतार, आदिनाथ चरणें नमी कहिस्युं जीव विचार | इस रास में विजयानंद सूरि का उल्लेख हीर पट्टोधर के रूप में हुआ है।
१. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४०९ - ५८; भाग ३ पृ० ९१६-२३ तथा भाग ३ खंड २ (प्रथम संस्करण) पृ० १५१७ और भाग ३ (द्वितीय संस्करण, पृ० २३-७९ ।
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