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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसमें विजयसेन और विजयदेव सूरि को सादर स्मरण किया गया है। रचनाकाल-संवत सोल अठसठया वरसे, काती वदताहां सार रे, दीपक दिन दीवाली केरो, स्यूकर मल्यो ताहां सार रे।' इस रास के भी अन्त में त्रंबावती नगरी और अपने पिता संघवी सांगण का कवि ने उल्लेख किया है । नेमिनाथनवरसो अथवा स्तवन अथवा ढाल-(७२ कड़ी, सं० १६६७ पौष शुक्ल २, ऋषभनगर, खंभात) आदि----सरसति सामिनी पाय नमी जी गास्युनेम जिणंद, समुद्रविजय कुल (पाठान्तर जादवकुलमंडण) ऊपनो जी, प्रगट्यो पूनिमचंद, सुणो नर नेम समो नहि कोय । इसका रचनाकाल सं० १६६७ के अलावा १६६०, १६६२ और १६६४ भी माना जाता है क्योंकि इससे सम्बन्धित पंक्तियों के कई पाठान्तर मिलते हैं यथा--- संवत सोल सडसठा मांहि पोस मास सुद बीज उच्छाह; या वदो बँदो नेमनाथ वावी समोरे, संवत सोल चोसंठे...... या संवत सोल सोसठ... ... ... ... ... ... ... इत्यादि । चैत्य आदि संग्रह भाग ३ पृ० १५१-१५७ पर यह रचना प्रकाशित है। अजाकुमार रास --(५५७ कड़ी सं० १६७० चैत्र शुक्ल २, गुरु, खंभात) आदि -सकल जिनवर सकल जिनवर पाय प्रणमेव । वाघेस्वरी वेगें नमुसकल कवीनी जेह माय, तु मुख मारे आवजे सयल काम जिम सिद्धथाय । इसमें विजयसेन सूरि की वंदना की गई है। रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है संवत सोल सीतेर्यु जसई चैत्री शुदि दिन बीजइ तसि, गुरुवारि कीधो अभ्यास, त्रंबावती म्हा गायु रास। प्रागवंश वडो जो खास, सांगणसूत कवी ऋषभदास । १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ (द्वितीय संस्करण) पृ० २३-७९ । २. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४०९-५८; भाग ३ पृ० ९१६-२३ तथा भाग ३ खंड २ प्रथम संस्करण पृ० १५१७ और भाग ३ द्वितीय संस्करण पृ० २३-७९ । ३. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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