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________________ ऋषभदास आदि--'पास जिनेस्वर पूजीइ, ध्याइइ ते जिनधर्म, नवपद धुरि आराधिइ, तो कीजइ स्यभु कर्म ।' इसमें श्रावकों के पालन योग्य बारह व्रतों का वर्णन किया गया है बार व्रत श्रावक तणां मि गाया मतिसार, कवी को दोष न देसज्यु, हूं छू मूढ गंवार । इसमें कवि ने हीरविजयसूरि और विजयसेनसूरि से अकबर की भेंट का उल्लेख किया है यथा-- 'जे रिषि मुनीवर माँ अति मोटो, वीजइसेन सूरिराय जी, मुझ अंगणि सहिकार ज फलिउं श्रीगुरुचर्ण पसाई जी। जेणइ अकबर नृपतणी सभामां, जीत्युवाद वीचारी जी। रचनाकाल-- सोलसंवछरिजाणि वर्ष छासठि कातिअ वदि दीपकदाढ़ो, रास तव नीपनो आगमि ऊपनो, सोय सुणतां तुम पुण्य गाढ़ो। इसमें भी कवि ने खंभात नगर और अपने परिवार का वर्णन किया है। 'सुमित्रराजर्षिरास'--(४२५ कड़ी, सं० १६६८ पौष शुक्ल २, गुरुवार, खंभात) । आदि-श्री जिनधरम प्रकासीओ, स्वामी ऋषभ जिणंद, दान सील तप भावना, सुणतां अति आणंद । दान सुपात्ते देअतां किणिपाम्यो सुखवास, राजा सुमित्र सुखीओ थयो, सुणयो तेहनो रास । रचनाकाल--संवत सोल अडसठयो जसि, पोस सुदि दिन बीजइ तसि, गुरुवारि कीधो अभ्यास, त्रंबावती मां गायो रास।" 'स्थूलिभद्ररास' (७३२ कड़ी, सं० १६६८ दीपावली, कार्तिक अमावस्या, शुक्रवार, खभात)। आदि---ब्रह्मसुतानी पूजा करूं सारद नाम ऋदे मांहां धरूं । गुण गाऊ माता तुम तणां, बोल आपे मूझ सोहामणा । स्थूलिभद्र नो गास्यु रास, तेणि माता मुख पूरे वास । १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ (द्वितीय संस्करण) पृ० २३-७९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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