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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास "संवत सोल वरस वर बावन वैशाखी सातमि गुरु दिन, षट् नवकार कथान वरी भणयो कवि रचाउ खप करी। तपगछ अंबर दिनकर हाय, श्री विजयसेन गुरु प्रणमी पाय, तस श्रावक ऊजल इम भणे, श्री नवकार जोऊ भांमणे ।” इसकी अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार है "श्री नवकार कथा महामंत्र, धन्य पुरुष जे समरे अंति, जे जे बोल कहिया कवि सार, ते श्री सरसति ने आधार ।"१ कवि की भाषा शैली में काव्योचित चमत्कार एवं माधुर्य भी पाया जाता है। उपदेशपरक साहित्य को भी कवि ने अपनी उक्तियों से सरस बनाने का प्रयत्न किया है । ऋषभदास (श्रावक)—आपके पिता का नाम सांगण था, जो खंभात निवासी वीसा पोरवाड़ वणिक थे। आपकी माता का नाम सरूपादे था। आपके पितामह महिराज थे जिनका मूलस्थान वीसलनगर था, वहाँ से चलकर सांगण खंभात आये और यहाँ व्यापार से खूब धन अजित किया। कवि ऋषभदास ने अपनी रचनाओं में खंभात नगर का विशेष वर्णन किया है जिससे १७वीं शताब्दी में खंभात और उसके आसपास की यथार्थ स्थिति का परिचय मिलता है। कवि ने तत्कालीन जनस्थिति, राजस्थिति और लोगों के रहन-सहन का सुन्दर वर्णन किया है। खंभनगर, त्रंबावती, भोगावती, लीलावती, कर्णावती और ऋषभनगर आदि विभिन्न नामों से कवि ने अपनी विभिन्न रचनाओं में खंभात का सस्नेह स्मरण किया है। खंभात नगर विशेषतया माणक चौक से सम्बन्धित अनेक जनश्रुतियों और लोकवार्ताओं को भी यथास्थान अपनी रचनाओं में उन्होंने वणित किया है। उनकी पत्नी सुलक्षणा वस्तुतः सर्वगुण सम्पन्न सुलक्षणा थीं। भाई-बहन, पुत्र-परिवार से वे सुखी थे। उन पर लक्ष्मी के साथ सरस्वती की भी कृपा थी। वे शास्त्रानुकूल श्रावकाचार का पालन करते थे। जिन मंदिर में दर्शन-पूजन; शत्रुजय, शंखेश्वर, गिरनार आदि तीर्थों की यात्रा और गरीब छात्रों की सहायता आदि धर्मकार्य निष्ठापूर्वक करते थे। उन्होंने अपने पूर्व कवियों का भी अपनी रचनाओं में बड़े आदर के साथ स्मरण किया है जिससे अनेक ऐतिहासिक महत्त्व की सूचनायें उपलब्ध होती हैं। १. जैन गुर्जर कवियो भाग ३ खंड १ पृ० ८१७-८१९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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