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________________ उदयसागर ऊजल कवि ५। इनकी भाषा मरु प्रधान मरु- गुर्जर है । मरुवासी होने के कारण मरु की प्रधानता स्वाभाविक है, किन्तु भाषा बोधगम्य, प्रवाहयुक्त एवं सुगम है । उदयसागर -- आप खरतरगच्छीय पिप्पलक शाखा के साधु सहजरत्न के शिष्य थे । आप इस शताब्दी के उत्तम गद्यकारों में गिने जाते हैं । आपने सं० १६५७ में 'क्षेत्रसमासबालावबोध नामक भाषा टीका की रचना उदयपुर में की। इनकी लिखी लोकनाल वार्तिक भी प्राप्त है । क्षेत्रसमास की रचना आपने मंत्री धनराज के पुत्र गंगा की अभ्यर्थना पर की थी ।" आप संस्कृत के भी ज्ञाता थे और संभावना है कि 'वाग्भट्टालंकार टीका' के लेखक भी शायद यही उदयसागर थे । २ उदयसागर सूरि-- आप विजयगच्छ के विजयमुनि की परम्परा में विमलसागर सूरि के शिष्य थे । इनका रचनाकाल अधिकतर १८वीं शताब्दी में पड़ता है, अतः इनका विवरण आगे के लिए छोड़ दिया जाता है । ऊजल कवि -- आप तपागच्छीय विजयसेन सूरि के श्रावक शिष्य थे | आपने सं० १६५२ वैशाख ७ गुरुवार को राजसिंहकथा ( नवकार रास ) की रचना की । इसमें महामंत्र नवकार की महिमा का वर्णन किया गया है यथा - काल अनादि सास तो महामंत्र नवकार, धूरि जपीओ जिनवर कहे, चउदांपुरनसार । इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है 'चंद्रवयण मृगलोयणी पोइण जिसु सुकमाल, मूँगफली कर ऊंगली, सब नख रंग रसाल ।' अंगुलियों की मूँगफली से उपमा अनुपम है । रचनाकाल निम्न पंक्तियों में देखिए- १. श्री अगरचन्द नाहटा -- राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २२९-२३० २. वही, पृ० ७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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