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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रचना का आदि और रचनाकाल इस पंक्तियों में देखिएआदि 'ओंकाराय नमो अलख अवतार अपरंपर, गहिन गुहिर गंभीर प्रणव अख्यर परमेसर । त्रिएह देव त्रिकाल त्रिएह अक्षर त्रेधामय, पंचभूत परमेष्ठि पंच इन्द्री पराजय । धुरि मंत्र यंत्रइ धंकारि धुरि, सिध साधक भाषंति सह, भद्रसार पयंपइ गुर संमत उदेपुत्र ओंकार कहि । १। रचनाकाल 'गिर आठ अचल ब्रह्मा विशन, ईश अचल जां लगि इला, उदैराज अचल तां बावनी, गण प्रकाश चढ़ती कला। रस मुनि षट सिस (शशि) समय करी बावन्नी पूरी, बइसाखी पूर्णिमा वसंत रितु ताई सनूरी।' इनके अतिरिक्त आपकी अन्य रचनायें भी प्राप्त हैं जिनमें 'वैद्यविरहिणीप्रबन्ध' तथा चौबीस जिन (सवैये) उल्लेखनीय हैं। वैद्यविरहिणीप्रबन्ध में कुल ७८ दोहे हैं। विरहज्वर से पीड़ित नारी व्रजराजरूपी वैद्य के पास जाती है और अपना दुख निवारण कराती है। अन्त में कवि ने लिखा है : "अपने अपने कंत सं रसवास रहिया जोइ, उदैराज उन नारि कू, जमे दुहाग न होइ । जां लगि गिरि सायल अचल, जांम अचल धूराज, तां रंग राता रहै, अचल जोड़ि व्रजराज । ७८।" इसमें कृष्ण भक्ति काव्य का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है । इन्होंने दोहे, कवित्त, सवैये आदि व्रजभाषा के प्रिय छन्दों का ही अधिक प्रयोग किया है। इनकी रचनाओं में नीति, शृङ्गार और धर्मदर्शन आदि विषयों की विविधता महत्वपूर्ण है। वैद्यविरहिणीप्रबन्ध की एक प्रति अभय जैन ग्रन्थालय में सुरक्षित है। ___ 'जिन चौबीसी' में २४ तीर्थंकरों की स्तुति है। इस प्रकार कवि ने जैन और वैष्णव आराध्य देवों को आधार मानकर विविध भावयुक्त नाना छंद-प्रबन्धों में कई सुन्दर रचनायें प्रस्तुत की हैं। इसलिए वे १७वीं वि० के जैन श्रावक कवियों में श्रेष्ठ स्थान के अधिकारी हैं। १ जैन गुर्जर कवियो भाग ३ खंड १ पृ० ९७५-७६ २. श्री अगर चन्द नाहटा--राजस्थानी का जैन साहित्य पृ० २७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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