________________
उदयमंदिर - उदयराज
दिया गया है।' अन्य विवरण १८वीं शताब्दी में ही देना उपयुक्त होगा।
उदयराज -आप खरतरगच्छीय भावहर्षी शाखा के श्रावक श्री भद्रसार के पुत्र थे । आपकी माता का नाम हरषा और पत्नी का नाम पुरवणि था, इनके पुत्र का नाम सूदन था । इनका जन्म सं० १६३१ में हुआ था। सं० १६३१ से लेकर सं० १६७६ तक इनकी उपस्थिति की जानकारी मिलती है। राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज भाग २ के पृ० १४२ पर इनका तथा इनकी रचनाओं का संक्षिप्त उल्लेख किया गया है। 'भजनछत्तीसी' और 'गणबावनी' इनकी दो प्रसिद्ध रचनायें प्राप्त हैं। श्री अगरचन्द नाहटा ने इनके करीब ५०० दोहों का भी उल्लेख किया है। इनके नीतिविषयक दोहे राजस्थान में लोकप्रिय रहे हैं। भजनछत्तीसी से पता चलता है कि जोधपुर के राजा उदयसिंह आपके प्रशंसक और आश्रयदाता थे। संभावना है कि इनका जन्म स्थान बीकानेर और कर्मस्थान जोधपुर रहा होगा। भजनछत्तीसी की रचना मांडावइ नामक स्थान में सं० १६६७ फाल्गुन वदी १३ को हुई। मांडावइ जोधपुर में स्थित है, इसलिए अनुमान होता है कि वे तब तक जोधपूर आ चके थे। इसमें कवि ने अपना परिचय दिया है और लिखा है कि 'भजन-छत्तीसी' की रचना उन्होंने ३६ वर्ष की उम्र में सं० १६६७ में किया। इसलिए इनका जन्म सं० १६३१ ठीक लगता है। इसमें उन्होंने अपने एक भाई सूरचन्द्र का भी नामोल्लेख किया है । इमका विषय इसके नाम से ही स्पष्ट है । गुणबावनी की रचना कवि ने सं० १६७६ वैशाख शुक्ल १५ को ववेरेई में की। इसे सुभाषितबावनी या गुणभाषा भी कहते हैं । इसमें अध्यात्म और निर्गुण पर सुभाषित छंद हैं। इनका भी उपनाम उदो था जैसा कि निम्नपंक्तियों से प्रकट होता है :
शिव शिव कीधा किस्यू, जीता ज्यों नहीं काम, क्रोध, छल, काति नहाया किस्यू जो नहीं मन मांझि निरमल.
लूगउ किस्यूँ मैले किए, ज्यों मनमांहि मइलो रहइ ।
घरबार तज्या किस्यूं, अणबुझा 'उदो' कहइ।"२ १. श्री अ० च. नाहटा--परम्परा पृ० ८९ २. डा० प्रेमसागर जैन--हिन्दी जैनभक्ति काव्य पृ० १५२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.