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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास 'श्री पूजि पासचंद पाओ नमी, हरष धरी रचीयउ रास तु, ऋषि ऊदउ कहइ जे भणइ, तिहां घर मंगल लील लच्छि
विलास तु ।८४।' इसकी सं० १६२८ में श्राविका लीला के पठनार्थ यति जयकरण द्वारा लिखित प्रति प्राप्त है । इसकी अन्य प्रतियाँ भी विभिन्न ज्ञानभंडारों में सुरक्षित हैं।
उदयमंदिर-आप आंचलगच्छीय कल्याणसागर सूरि के प्रशिष्य एवं पुण्यमंदिर के शिष्य थे। आपने सं० १६७५ कार्तिक शु० १३ सोमवार को सेखाटपुर में 'ध्वजभुजंग आख्यान' नामक रास की रचना की। रचनाकाल का उल्लेख कवि ने इन पंक्तियों में किया है
'संवत सोल पंच्योतरे रे, कारतिक मास मझारि रे, सुद तेरस अति उजली रे, सोम सुतन भलोवार रे । विधिपक्ष गछ गुरु राजीओ रे, सोहे निर्मल नाण रे, दिन दिन महिमा दीपतो रे, जिम उदयाचले भांण रे ।
तास पक्ष पंडितबरु रे, पुन्यमंदिर मुनिराय रे, विनइ तेहना वीनवे रे, उदयमंदिर धरी साय रे । रास रच्यो खते करीरे, सेरवाटपुर मांहि रे,
नरनारी जे सांभले रे, तस होई अधिक उछाहि रे । रचना साधारण, भाषा सरल मरुगुर्जर है। इसमें ध्वजभुजंग का आख्यान दिया गया है।
उदयरत्न-आप वि० १७-१८वीं शताब्दी के कवि हैं। आप जिनसागर सरि के शिष्य थे। आपने सं० १६९७ में 'चित्रसेन पद्मावती चौपई' और सं० १७२० में 'जंब चौपई' की रचना की। आप मुख्य रूप से १८वीं शताब्दी के कवि हैं। चूंकि एक रचना १७वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में लिखित उपलब्ध है इसलिए यहाँ उसका उल्लेख कर
१. डा० क० च० भारिल्ल-राजस्थान के जैन ग्रन्थ भण्डारों की ग्रन्थ सूची
५वाँ भाग पृ० ६४४-६४५ और जैन गुर्जर कविओ भाग ३ खंड १
पृ० ६८९ २. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४९०-९१
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