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________________ ईश्वर - उदयकर्ण उत्तमचंद-आप आंचलगच्छीय कल्याणसागर के प्रशिष्य एवं श्री देवसागर के शिष्य थे, आपने सं० १६९५ आषाढ़ शुदी में 'सुनन्द रास' की रचना की। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ :-- शक्तिदाता समरु सदा परउपगारी प्रधान, ध्यान वलि ध्याऊ वली निरुपम लब्धि निधान । सुनंदा ह केरी वारता सांभली सास्त्र मझारि, ते भाषाबन्धि भणिसि हूं सुण्यो चित्तविचारि । इणिपरि साधु तणा गुण गावि, सुमति सफल कहावि जी। साधु सुनंद सु सुहावि, नामि नवनिधि पाविइ जी। रचनाकाल--संवत सोल पंचाणुआ व रसि, आषाढ़ सुदि हरसि जी, श्री अंचलगछि विराजि, श्री कल्याणसागर सूरिराजिजी। अन्तिम पंक्तियाँ--वाचकवंस विभूषण वारु श्री देवसागर भवतारु जी, तास सीस मनि भावि उत्तमचंद गुण गावि जी।३५८।' इस रास में साधु सुनंद का चरित्र चित्रित किया गया है । भाषा सरल एवं काव्यत्व सामान्य कोटि का है। उदयकर्ण (उदो या उदउ)-आप पावचन्द्र के शिष्य थे। आपकी दो रचनायें (१) हरिकेशीबल चरित्र (गाथा ६९ सं० १६१०) और (२) “सनत्कुमाररास' (८४ कड़ी सं० १६१७ श्रावण शु० १३) प्राप्त है। सनत्कुमाररास का रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है-- सोलहसइ सतरोतरे, श्रावण सुदि तेरसि अवधारि तु, उत्तराज्झयण संक्षेप थी, विरति (चरित) थकी कीधो उधार तु।८३। इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है :'सुखकर सतीसर नमू, सद्गुर सेव करउ निसदीस तु, तास पसाइ अठासरउ, सिद्धि सकल मननी सजगीस तु ।। सनतकुमार सुहामणउ उतिम गुण मणि न उ अहिणणुं तु, चक्रीसर चउत्थउ सती, चतुरपणह मोहइ सयराणं तु ।२। इसके अन्तिम छंद में कवि ने अपने गुरु का स्मरण किया है :"१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ खंड पृ० १०५९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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