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________________ परिशिष्ट इसी प्रकार ढाल-'अतिरंग भीने हो रंगभीने हो मोहणलाल' जो राग केदारु में आबद्ध हैं, कई समर्थ कवियों द्वारा कई स्थानों पर प्रयुक्त हैं, इसे समयसुन्दर ने अपनी रचना नलदवदंती रास में, ज्ञानमेरु ने कुणकरंडरास में और शांति विजय ने चौबीसी शांतिभास में किया है । इसी प्रकार के अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। श्री देसाई ने विशेष महत्वपूर्ण ढालों की एकाधिक पंक्तियां या कहीं-कहीं सम्पूर्ण रूप से उद्धृत किया है। ये सम्पूर्ण ढाल उन्हें श्री अगरचन्द नाहटा के सौजन्य से प्राप्त हुए थे। इस प्रकार इस महत्वपूर्ण कार्य के सम्पादन में दोनों विद्वानों का युगपत सहयोग रहा है। इन सभी ढालों को देखने से लगता है इनमें सर्वत्र अध्यात्म का ही प्राधान्य नहीं है वरन् लोकगीतों, व्यञ्जनाओं और सामान्य भावनाओं की भी अभिव्यन्जना हुई है जैसे-- आज रयणि बसि जाऊं, प्रीतम सांवरे । या तन का पिंजरा करुं रे, ते मैं राखु तोहि, जबह पिया ! तुम गमन करोगे, मुइं सुणोगे मोहि । प्रीतम सांवरे । यह राग सारंग में आबद्ध एक लोकप्रिय गीत है । इसी प्रकार आज सखी सुपनो लह्यो, घरी आंगण आबो मोरीयो, मेरी अंखियां फरके हो। अहो घर अवंणहारा नाह हो, मेरी अंखियां फरके हो।' इस ढाल का प्रयोग आणंदसोम ने अपनी रचना सोमविमल सूरिरास (सं० १६१०) में किया है। ___इन ढालों में से कुछ तो हिन्दी प्रदेश में भी अति लोकप्रिय हैं जैसे जमण्डल देश दिखावो रसिया', ब्रज मण्डल को आछो नीको पाणी, गोरी गोरी नारि सुधडि रसिया । या 'वाडी फूली अति भली मन भमरा रे । इत्यादि। ज्यादातर ढाल लोकाख्यानों, लोकवार्ताओं पर आधारित हैं । १..जैन गुर्जर कविओ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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