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जैसे
या
मेरे पीऊ की खबर को लावे मेरे वंभना । युगी रे कर को कंगना ।
या
मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
वलद भला सोरठा रे, वाहण बीकानेर रे हठीला वैरी, मरद भला छें मेडते रे लाल, कामिणी जैसलमेर रे हठीला
इस ढाल का प्रयोग समयसुन्दर ने चंपक चोपाई (सं० १६९५ ) और जयरंग ने कयवन्ना चौपई में किया है । कुछ ढाल धार्मिक महापुरुषों या धार्मिक स्थलों पर आधारित हैं जैसे
पाणी रमझम वरसे, मोने जांणा गढ़ गिरनार ।
कुछ ढाल राजस्थानी वीरों और राजस्थानी जन-जीवन का संकेत करते हैं, जैसे
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करहा चाल उतावलो, पगड़े छै गण गोरजी, बुधसिंह हाड़ाजीरो करहलो ।
उदयपुर रा वासी । गढ़ जोधाण मेवासी । हो जोरावर जोधा, मुजरो लीजे म्हांरीनाथ ।
इस प्रकार इन ढालों में राजस्थान गुजरात के जन-जीवन, लोकगीत, लोकवार्ता और लोकाख्यानों का मार्मिक स्मरण होता रहता है । इन ढालों के कारण जैन कवियों की रचनाओं में माटी की जो महक आ गई है उससे प्रायः नई उपदेशपरक रचनायें भी ग्राह्य बन गई हैं ।
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