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________________ ६२६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने हिन्दी साहित्य के इतिहास में १३वीं से १८वीं शताब्दी तक को मध्यकाल माना है और उसका दो उपविभाग-पूर्वमध्यकाल या भक्तिकाल (१३-१६वीं विक्रमीय) और उत्तरमध्यकाल या रीतिकाल (१७-१८ वीं) कर दिया है। चूंकि जैन हिन्दी साहित्य में रीतिकाल नामक कोई काल विभाग नहीं हो सकता इसलिए इस कालावधि को हिन्दी जैन साहित्य का भक्ति काल मानना ही उपयुक्त है। इस मध्यकालीन भक्ति युग में धर्म, अध्यात्म, भक्ति की प्रधानता निर्विवाद रूप से प्राप्त है। डा० शशिभूषण दास गुप्त का कथन विचारणीय है कि 'सभी अद्यतन भारतीय भाषाओं के साहित्य की ऐतिहासिक प्रगति की एकरूपता का कारण यह है कि तत्कालीन सभी भारतीय आर्य भाषाओं के साहित्य का विकास एक जैसी ऐतिहासिक अवस्था में हुआ था।'' ___आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का भी मत है कि यदि भारत में मुसलमान न भी आये होते और राजनैतिक पृष्ठ भूमि भिन्न प्रकार की होती तो भी अध्यात्म प्रधान भक्तिभाव की रचनायें सभी भारतीय आर्य भाषाओं में अवश्य होती और होना प्रारम्भ भी हो चुका था। दक्षिण के आलवारों, वारकरियों का साहित्य इस कथन का प्रमाण है। वहाँ तब तक न मुसलमानों का आक्रमण हुआ था और न उत्तर भारत जैसी राजनीतिक पृष्ठभूमि थी। इसलिए यह युग सभी भारतीय आर्य भाषाओं और द्रविण भाषाओं के साहित्येतिहास में अध्यात्म और भक्तिभाव की साहित्यिक रचनाओं का युग है, फिर जैन साहित्य का तो यह प्रधान स्वर ही रहा है, ऐसी स्थिति में इस युग की जैन हिन्दी साहित्य की रचनाओं में भक्ति का प्राधान्य स्वाभाविक था और इसलिए इस युग को किसी व्यक्तिविशेष के नाम से जोड़ने के बजाय भक्ति युग कहना ही समीचीन है। साथ ही यह वि वार भी शतप्रतिशत सही नहीं है कि समस्त हिन्दी जैन साहित्य कोरा उपदेशात्मक, साम्प्रदायिक और नीरस है। ग्रन्थ में उल्लिखित रचनाओं का अवलोकन करने से यह कथन स्वयं स्पष्ट हो जायेगा कि इनमें से अनेक कृतियां काव्यात्मक तत्वों से भरपूर साहित्यिक रचनायें हैं और उनकी संख्या इतनी विपुल है कि उनके आधार पर जैन भक्ति काल स्वर्ण काल की उपाधि का उचित अधिकारी है। १. डा० शशिभूषण दास गुप्त Obscore Religions Cult, Page 831 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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