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आणंदसोम - आनन्दोदय
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'आणंद सोमकला मिली संवत् ओगणीसइ माघ मासिरे ।
दसमी गुरुवारि रचिउ, नंदरवारि रे रासि उल्हासि ।' यह रास १५६ कड़ी का है और इसकी रचना सं० १६१९ माघ १० को नंदरवार नामक स्थान पर हुई थी। यह रास 'जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय' में प्रकाशित है। ___ 'स्थूलभद्र स्वाध्याय' अपेक्षा कृत छोटी रचना है। यह ५३ कड़ी की रचना है। यह सं० १६२२ श्रावण सुदी १० को वैराट नामक. स्थान में पूर्ण की गई । इसके अन्त की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं :
"तपगच्छि निर्मल चन्द्र, श्री सोमविगल सूरिंद, तस सीस रचिउ सज्झाय, सांभलता (मन) निर्मल थाय । पृथिवी रस संवत अह, कुच कएर्ण प्रमाणि जेह । श्रावण सूदी दसमी दिवसि, वयराटि थणिउ मन हरसि । जां तारा गयणि दिणंद, जं सायर मेरु गिरिंद,
तां प्रतपु जावली सोम, इंम भणइ आणंदसोम ।"२ आनन्दोदय (आनन्दउदय)-आप खरतरगच्छीय जिनतिलक सूरि के शिष्य थे। आपने सं० १६६२ आसो शुक्ल १३, रविवार को बालोतरा में विद्याविलास चौपइ' की रचना की। यह ३०७ कड़ी की विस्तृत रचना है। इसके अन्त की कड़ियों में रचनाकाल, रचनाकार और उसकी गुरु परम्परा के सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी दी गई है अतः सम्बन्धित पंक्तियाँ आगे उद्धृत की जा रही हैं
'सुगुरु बचन थी सांभली, पामी गुरु आदेस, विद्याविलास नरवर तणी चउपइ करी लवलेस । सोल बासठइ वछरइ, आसू सुदि रविवार, तेरसदिन ओ संथुणी बालोतरा मझार । गछ चउरासी परगटउ..'का पाठान्तर इस प्रकार मिलता
"खरतरगछ (सहु) माहइ परगटउ श्री भावहर्ष सुरिंद । तसु पाटइ उदयउ अधिक ... ... ... मुणिंद ।३०६।
१. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृ० १४९ २. जैन गुर्जर कविओ (नबीन संस्करण) भाग २ पृ० ११२-११३
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