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मरु-गुजर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसमें कवि ने अपने गुरु विमलकीति का गुणगान किया है। ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में इसे १७वीं शताब्दी की कृति माना गया है । इससे अधिक कृति या कृतिकार का विवरण उपलब्ध नहीं हो सका है।
आणंदसोम--आप तपागच्छीय हेमविमल सूरि के प्रशिष्य और “सौभाग्यहर्ष के शिष्य थे। आपका जन्म सं० १५९८ में और दीक्षा सं० १६०१ में हुई। सं० १६३० में सोमविमल सूरि ने इन्हें सूरिपद प्रदान किया और सं० १६३७ में आपका स्वर्गवास हआ। रचनायें-- आपने सं० १६२२ में 'स्थूलभद्र स्वाध्याय' की रचना की। इसके पूर्व सं० १६१९ में आपने अपने गुरु सोमविमल सूरि की प्रशस्ति में 'सोमविमलसूरिरास' लिखा था। इस रास में कवि ने तपागच्छ के संस्थापक आचार्य जगच्चन्द्र से लेकर सोमविमल सूरि तक की विरुदावली का वर्णन किया है। इस रास से पता चलता हैं कि त्रंबावती (खंभात) के निवासी मंत्री समधर के वंशज रूपवंत और उनकी पत्नी अमरा दे के आप पुत्र थे। इनका जन्म सं० १५७० में हुआ था। बचपन का नाम जसवंत था। हेमविमल सूरि के प्रवचन से प्रभावित होकर इन्हें विरक्ति हुई; दीक्षा लिया और नाम सोमविमल सूरि पड़ा। सोमविमल सरि स्वयं अच्छे रचनाकार थे। इन्होंने धम्मिलकुमाररास, चंपकश्रेष्ठिरास, श्रेणिकरास आदि कई रचनायें की हैं। क्षुल्लककुमाररास सं० १६३३ की रचना होने के कारण इन्हें १७वीं शती का कवि भी माना जा सकता है किन्तु इनका उल्लेख १६वीं शताब्दी में किया जा चुका है। आणंदसोमकृत सोमविमल रास मरुगुर्जर भाषा की एक उत्तम काव्यकृति है। रचनाकार का सम्बन्ध गुर्जर प्रदेश से अधिक होने के कारण भाषा पर भी गुर्जर-प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है । यथा -
'जपु तपगच्छनु शृंगार, जाणो समता रस शृंगार । श्री सोमविमल गणधार, जपु ज्ञान तणुं भंडार । गंगाबेल कण भवतु गयलिंगणि ताराभवतु,
रयणायर रयणह संख, करइ गुरुगुण तुही आसंख ।' रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है१. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह–'विमलकीर्ति गुरु गीतम्'
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