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गद्य साहित्य
६१५ वरन् लोकोपकार के लिए लिखते थे इसलिए अनेक कृतियों में उनके रचयिताओं में नाम-पते भी नहीं हैं। एसी कुछ अज्ञात गद्यकृतियों के गद्यनमूने आगे दिए जा रहे हैं।
'विवेकविलास बालावबोध'- इसके कर्ता का नाम अज्ञात है : मूलकृति जिनदत्तसूरि की है। इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ हैअथ टीका भाषा लिख्यते । परमात्मनइ नमस्कार । किस्यं परमात्मा । श्री शास्वत निरंतर आनन्दरूप छइ। जे अन्धकार तेहना स्तोम समूह । तेह नसाडवानइ । ओक सूर्य समान छइ । सर्वज्ञ सर्वभूत भावि जाणइ छइ ।' यह मरुगुर्जर गद्य का शुद्ध नमूना है।
'षष्टिशतक बालावबोध'-मूलकृति नेमिचंद्र भण्डारी की है जिनका परिचय प्रथम खण्ड में दिया जा चुका है। इस कृति का अपर नाम सिद्धांत पगरण 'या उपदेश सिद्धान्त रत्नमाला' है । इसका आदि'नमो अरिहंताणं' । घुरली गाथाइ च्यारि बोल सारभूत छइ ते कहीइ छइ अरिहंत देव । अरिहंत किहवा छइ । अठार दोष रहित । ते अठार दोष कोण । अनाण, कोह, मय, माण, माय, लोभ, रति, अरति, निद्रा, शोक, अलीकवचन, चोरी, मछर, भयाई, प्राणवध, प्रेमक्रीड़ा, पसंग, हासाय ओ अठार दोष थी रहित । २ वाक्य छोटे-छोटे और सरल हैं ।
एक टबार्थ का नमूना प्रस्तुत है। रचना का नाम है- 'ज्ञाताधर्मकथा टबार्थ' लेखक का नाम अज्ञात है। भाषा शैली का नमूना निम्नांकित है
'वेय । कहतां आगम लोकीक लोकोतर तेहना जाण । नय । कहता सात नयका भेद ७०० तेहना जाण। नियम । कहतां विचित्र अभिग्रह विशे तेहना कारणहार । सोय। कहतां भावथी अतीचार रहित ।" इसी प्रकार ज्ञाताधर्म कथाटबार्थ, उत्तराध्ययन सूत्र टबार्थ, अनुत्तरोपपातिकदश टबार्थ, निरयावली सूत्र टबार्थ और अंतगडसूत्रटबार्थ आदि अनेक टबा प्राप्त हैं जिनके लेखकों का नाम अज्ञात है। प्रज्ञापना सूत्र टबार्थ के मध्य की कुछ पंक्तियाँ नमूने के रूप में प्रस्तुत हैं
मेर परबत ऊपरि जे बाइ छइ तिस माहि जेम छह हि ते मरीनइ नरकि जाहि तिहु लोकनइ करसहि तेण कारणि अहे
१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ३८६ (द्वितीय संस्करण)
२. वही, पृ० ३८७ Jain Education International
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