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________________ ६१४ मरुगुर्जर जैन साहित्य का बृहत् इतिहास संख्या में लिखें गये, यथा-कुशलभुवनगणिकृत सप्ततिका बालावबोध १६०१ वि०, सोमविमलकृत कल्पसूत्र और दशवकालिक बालावबोध, पावचन्द्र शिष्य समरचंद्रकृत संस्तार प्रकीर्णक पयन्ना बालावबोध, कुशल वर्धन शिष्य नगर्षि गणि कृत संग्रहणी बालावबोध, कनककुशल कृत वरदत्त गणमंजरी बालावबोध, मेघराजकृत समवायांग, औपपातिक, उत्तराध्ययन, नवतत्वप्रकरण, क्षेत्रसमास पर बालावबोध, श्रतसागरकृत ऋषि मण्डल बालावबोध, रत्नचंद्रगणिकृत सम्यकत्व रत्नप्रकाश (जो सम्यकत्व सप्तति पर लिखा बालावबोध है), सं० १६९४ में धर्मसिंह ने २७ सूत्र का गुर्जर गद्य में टब्बा लिखा । ये (धर्मसिंह) लोकाशाह से अलग एक शाखा के संस्थापक थे और इन्होंने सूत्रों की स्वतन्त्र व्याख्या की है। इन्होंने अनेक महत्वपूर्ण कृतियों पर टीप, बालावबोध और टब्बा आदि लिखा है। मतिसागर ने लघुजातक नामक ज्योतिष ग्रन्थ पर वचनिका लिखी और भानुचन्द के शिष्य सिद्धिचंद ने संक्षिप्त कादम्बरी कथा प्राचीन गद्य शैली में मौलिक ढंग से लिखी। इसको भाषा सरस है, और अकबरकालीन मरुगुर्जर शैली का शुद्ध नमूना प्रस्तुत करती है। इनके अलावा कुछ प्रसिद्ध लेखकों की गद्य रचनाओं का नामोल्लेख मात्र किया जा रहा है जैसे मेरुसुन्दरकृत शीलोपदेश (सं० १६०८), पुष्पमाला प्रकरण और कर्पूर प्रकरण आदि । विजयतिलककृत विचारस्तव बालावबोध १६११, सोमविमलकृत कल्पसूत्र, दशवकालिक विपाकसूत्र और गौतमपृच्छा पर लिखित बालावबोध, कनककुशलकृत गुणमंजरी कथा, सौभाग्यपंचमी और ज्ञानपंचमी कथा पर बालावबोध सं० १६५५, श्रीपाल ऋषिकृत दशवैकालिक सूत्र, नन्दीसूत्र पर बालावबोध सं०१६६४, धनविजयकृत कर्मग्रन्थ बालावबोध, पद्मसुन्दरकृत भगवती सूत्र बालावबोध, सूरचंद कृत चतुर्मासी व्याख्यान बालावबोध, श्रीसारकृत गुणस्थानक बालावबोध और मुणबिजयकृत अल्पबहुत्व बालावबोध तथा राजहंसकृत दशवकालिक बालावबोध आदि इस काल की अन्य उल्लेखनीय गद्य रचनायें हैं। जैन साहित्यकार प्रायः साधक और सन्त रहे हैं। इनके लिए साहित्य विशुद्ध कला की वस्तु कभी नहीं रहा। अतः जैसे पद्य में वैसे ही गद्य में भी चमत्कार या अलंकरण की प्रवृत्ति नहीं मिलती अपितु अभिव्यक्ति की सरलता, सुबोधता और सहजता का सदैव आग्रह दिखाई पड़ता है। ये साधु लेखक अपने नाम, यश के लिए नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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