________________
गद्य साहित्य
लिख्यते', एक जीव द्रव्य वाके अनन्त गुण अनंत पर्याय । एक-एक गुण के असंख्यात प्रदेश, एक-एक प्रदेसनि विष अनन्त कर्मवर्गणा, एक-एक कर्म वर्गणा विष अनन्त अनन्त पुद्गल परमाणु, एक एक पुद्गल परमाणु विष अनन्त गुण अनन्त पर्याय सहित विराजमान ।' गद्य भाषा में क्रमशः लश्कर या उर्दू की शब्दावली प्रबेश पा रही थी। बनारसीदास की भाषा में गुनाह, खता आदि अनेक ऐसे शब्द प्रयुक्त
इस युग की एक गद्य रचना 'प्रद्युम्न चरित' की प्रति सं० १६९८ की लिखित जैन मन्दिर सेठ कौंचा, दिल्ली के शास्त्रभंडार में सुरक्षित है। यह गद्य रचना ७२ पन्नों की है। यह प्राचीन गद्य भाषा शैली की रचना है। खड़ी बोली में उद मिश्रित नवीन गद्य शैली की एक पुस्तक कुतुबशतक या 'कुतुबदीन की बात' की सं० १६३३ की लिखित प्रति भी प्राप्त है जिसकी कुछ पंक्तियां आगे नमूने के रूप में दी जा रही हैं
दिल्ली सहर सुरताण पेरोज साहि थाना, बीबीयाँ लाज लोजइ बँधाना। बाड़ीयां बेलियाँ नयणे दिखावई,
सहिजादा आगइ सरकणइ न पावई । इसकी भाषा पर 'दक्खिनी' भाषा शैली का प्रभाव देखा जा सकता है। सहजकुशल कृत 'सिद्धान्त हुण्डी' और मेरुसुन्दर कृत शीलोपदेश भाषा बालावबोध आदि कुछ अन्य रचनाओं में इन शैलियों का नमूना ढूढ़ा जा सकता है।
इस शताब्दी में बालावबोध और टब्बा आदि गद्यरूपों के अतिरिक्त कुछ मौलिक गद्य रचनायें प्रश्नोत्तर शैली में लिखी गई जैसे जयसोम उपाध्याय कृत दो प्रश्नोत्तर ग्रन्थ और हर्षवल्लभ उपाध्याय कृत अंचलमत चर्चा आदि । साधुकीर्ति कृत सप्तस्मरण सं० १६११, सोमविमलसूरिकृत दशवैकालिक और कल्पसूत्र बालावबोध तथा पद्मसुन्दरकृत प्रवचनसार बालावबोध आदि कुछ ऐसी रचनायें हैं जिनका उल्लेख इनकी पद्य रचनाओं के साथ नहीं हो सका। इस शती में संस्कृत और प्राकृत ग्रन्थों पर बालावबोध व टब्बा बड़ी १. हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास पृ० १३६ २. श्री अगर चन्द नाहटा- राजस्थान. में रचित हिन्दी साहित्य पृ० १११
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org