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अज्ञात कवियों द्वारा रचित कृतियाँ
६११ पहिलउ जी लीजइ श्री अरिहंत नाम, सिद्ध सविनइ जी करू प्रणाम ।
किरास भणिसि नवकार अन्त पुहकवर तेह दीप मझारि, भरतषेत्र तिहा छइ रे विचार,
सिद्धवट परवत ढुकडो वास,
इन्द्रपुरइ माहि तिहां रिष रहउ चउमास ।' ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह का ३०वा 'भावहर्ष उपाध्याय गीत' अज्ञात कवि की रचना है। इसमें भावहर्ष का इतिवृत्त दिया गया है। वे शाह कोड़ा और उनकी पत्नी कोड़म दे के पुत्र थे। खरतरगच्छीय सागरचंद्रसूरि शाखा के साधु तिलक के आप प्रशिष्य एवं कुलतिलक के शिष्य थे। आपने खरतरगच्छ की सातवीं शाखा "भावहर्षीयशाखा' का प्रवर्तन किया जिस की गद्दी बालोतरा में है। इसको प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं---
श्री सरसति मति दिउ घणी, सुहगुरु काउ पसाय, हरष करी हूं बीनवू श्री भावहर्ष उवझाय । सुरतरु जिम सोहामणा मनवंछित दातार,
हर्ष ऋद्धि सुख सम्पदा तरु श्रावण जल धार । इन पंक्तियों में रूपक अलंकार की शोभा द्रष्टव्य है। कवि सहृदय एवं काव्यशास्त्र से परिचित प्रतीत होता है। भाषा प्रांजल मरुगुर्जर है । इसमें कुल १५ छंद हैं । राग सोरठी में रचना निबद्ध है। ___इसी प्रकार जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय (सं० मुनि जिनविजय) में किसी अज्ञात कवि की रचना 'तेजरत्नसूरि संज्झाय' संकलित है जिसमें तेजरत्नसूरि का विवरण दिया गया है। आप अंचलगच्छीय विधि पक्ष के आचार्य थे। आपका जन्म गुजरात में अहमदाबाद के निकट राजपुर के निवासी श्रीमाली वणिक रूपा की
पत्नी कुंवरि की कुक्षि से हुआ था। बचपन का नाम तेजपाल था । . भावरत्नसूरि के उपदेश से वैराग्य हुआ और सं० १६२९ आषाढ़ शुक्ल
१० को दीक्षित हुए। सं० १६२५ में गच्छ नायक पद पर प्रतिष्ठित हुए और आपका नाम तेजरत्नसूरि पड़ा। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ निम्नवत् हैं१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ३८५ (द्वितीय संस्करण) २. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृ० १३६
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