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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास राग धन्यासी कानडीनु पार्श्व स्तवन (सं० १६०८) अंत संवत सोल १६०८ अठोतरि संवत्सरि की त्रिभवन उलास,
नयर बडोदरि राजपूर माहिं
सकलमूरति श्री पास भवीयण कुतारि । इनकी दूसरी रचना 'राग कानडोनुं स्तवन' खंडित रूप में प्राप्त है। जीव प्रतिबोध संज्झाय (४० कड़ी) आदि तूं स्याणां तूं स्याणां वे जीयड़े, तूं स्याणां २ वे जीयडे । अन्त तजि पन्द्रह परमाद विषसुख निज्जर करहु सयाणा बे,
धर्म सकल धरि ध्यान अनूपम, लहि निज केवलनाणा बे।' बारभावना संज्झाय (१२ कड़ी) और तमाकु संज्झाय (१५ कड़ी) भी अज्ञात कवि कृत रचनायें हैं जिनका रचनाकाल आदि भी अज्ञात है, बस वे केवल १७वीं शताब्दी की रचनायें हैं। ऋषभदेव नमस्कार आदि जगदानंद चन्द चतुर चिहु हंसि तुं च उपट,
परमेसर खरवष लख्यगु कोडि परगट ।' आदिनाथस्तवन (३१ कड़ी) और अमरसेन वयरसेन चौपाई आदि प्राप्त रचनायें हैं। इनमें 'श्रेणिक अभयकुमार चरित' (३४२ कड़ी) बड़ी रचना है । इसकी प्रारम्भिक दो पंक्तियां इस प्रकार हैं--
सोहावा श्री वीर जिनपाय पंकज प्रणमेसु,
श्रीणी अभयकुमार मित हुं संक्षेप कहेसि । प्राराधना (६५ कड़ी) और नवकाररास भी उल्लेखनीय रचनायें हैं। नवकार रास 'जैन प्राचीन संज्झाय संग्रह' में प्रकाशित है। इसका आदि इस प्रकार है--
१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ३६०-३६१ २. वही ३. वही भाग ३ पृ० ३७९ (द्वितीय संस्करण) ४. वही भाग ३ पृ० ३८३ (द्वितीय संस्करण)
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