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________________ ६०४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आपकी दोनों रचनायें तीर्थङ्कर और गुरु भक्ति की भावना से ओत-प्रोत हैं। यह भक्तिकाल का व्यापक प्रभाव था जिसके फलस्वरूप उस काल की जैन रचनाओं का भी प्रधान स्वर भक्तिभाव पूर्ण था। हंसराज II--आप खरतरगच्छीय वर्द्धमानसरि के शिष्य थे । 'ज्ञान बावनी' आपकी प्रसिद्ध रचना है जिसकी अनेक प्रतियाँ राजस्थान और गुजरात के ज्ञान भाण्डारों में उपलब्ध हैं। भक्ति एवं वैराग्य भाव से परिपूर्ण ५२ पद्यों की यह सुन्दर र चना है। भाषा सरल एवं प्रवाहपूर्ण है, यथा-- ओंकार रूप ध्येय गेय न कछु जाने, पर परतत मत मत छह मांहि गायो है। जाको भेद पावे स्यादवादी और कहो जाने, माने जाते आपा पर उरझायो है।' आपकी इस रचना का समय एवं आपके सम्बन्ध में अधिक 'विवरण नहीं ज्ञात हो सका है किन्तु श्री मो० द० देसाई ने इन्हें १७वीं शताब्दी का लेखक बताया है और इनकी एक गद्य कृति का उदाहरण भी दिया है जिससे इनका पद्य के साथ गद्य लेखक होना भी प्रमाणित होता है। इनकी गद्य रचना का नाम है 'द्रव्य संग्रह बालावबोध' । यह पुस्तक सं० १७०९ से पूर्व लिखी जा चुकी थी अतः निश्चय ही यह १७वीं शताब्दी की रचना होगी। यह रचना मूलतः दिगम्बर विद्वान् नेमिचन्द्र की कृति 'द्रव्य संग्रह' का बालावबोध (टीका) है। इसके प्रारम्भिक श्लोक से लेखक हंसराज II हिन्दी के साथ संस्कृत के भी ज्ञाता प्रतीत होते हैं, यथा-- द्रव्यसंग्रह शास्त्रस्य बालाबोधो यथामति हंसराजेन मुनिना परोपकृतये कृतः । पौर्वां पौर्व विरुद्धं यल्लिखितं मयका भवेत, विशोध्यंधीमता सर्वतदाध्नाय कपां मयि । खरतर गच्छन भोगणतरणीनां वर्द्धमान सूरीणां, राज्ये विजयनिनिष्टा नीतोय सहसि मासेव ।। १. हरीश शुक्ल-जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी साहित्य को देन पृ० २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ खण्ड २ पृ० १६२४ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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