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________________ ६०२ अन्त मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अह रिषि श्रावक गुण थुणइ, छ पय आवस्यक साजि रे, मंगलकारक तिणि भणी, रिद्धि नइ वृद्धिसिद्धि काजि रे, श्री खरतरगछि राजियउ श्री जिणचंद्रसूरीस रे, श्री जिनसिंहसूरि तसुपाटइं, विजय राजइ निसिदीस रे। हंसभुवनसूरि-आपके सम्बन्ध में अधिक विवरण नहीं उपलब्ध हो सका है। आपने सं० १६१०, छवीआर में ४६ कड़ी की एक रचना 'पार्श्वस्तव' नाम से की जिसका प्रारम्भ इस प्रकार है शासनदेवी मनधरी अ, गाऊं पास जिणंद, शंखेश्वरपुर मंडणो अ, दीठे परमाणंद । रचनाकाल--संवत् (१६१०) सोलदसोत्तरे थे, तवन रचीयूसार, श्री संभवनाथ पसाउले अे छवीआर नयर मझार । अन्त त्रणेकाल पूजे सदा अ, संखेश्वर श्री पास, श्री हंसभुवन सूरि ओम भणे ओ, पूरे मननी आस ।। कलश की दो पंक्तियाँ जे जन आराहे श्याम ध्याये पाप जाधे भव तणां, हंसभुवन सूरि इम जंपे शाश्वता सुख दे घणां ।' हंसरत्न--बिंबदणीक गच्छ के सिद्धिसूरि आपके प्रगुरु और हंसराज गुरु थे। आपकी कृति का नाम रत्नशेखर रास अथवा पंचपर्वी रास है । इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है-- सरसति दिउमुझ वाणी, साकर अमिय समाणी, हूं अति मूढ़ अइनाण, सहिगुरु करुंअ प्रणाम । आगे बिंबदणीक गच्छ और सिद्धिसूरि की स्तुति की गई है। इसकी अन्तिम पंक्तियाँ निम्नवत् हैं गोयम लवधि गणधरु मा०, पंडित श्री हंसराज, मिथ्या ताव निवारिउ अमा०, सारिउमाहरु काज। १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ६६२ (प्रथम संस्करण), और भाग २ g.. ४७-४८ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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