________________
६०१
हेमानन्द यथा-- जिनसासण शिवसासणइ, धरमहिं दान उदार,
दीधउ जिण परि तिण परइ सफल करइ संसार । इसमें खरतरगच्छ के आचार्य जिनमाणिक्यसरि एवं युगप्रधान जिनचंद्रसूरि का तथा उनकी सम्राट अकबर से भेंट का और उस भेंट के मध्यस्थ मंत्री कर्मचन्द आदि का वर्णन किया गया है। इसलिए इसका ऐतिहासिक महत्व है। अकबर और जिनचंद्रसूरि की मुलाकात का सन्दर्भ निम्न पंक्तियों में द्रष्टव्य है--
पाति साहि श्री अकबर राजि, करमचंद्र मंत्री तसु काजि, लाभ देखि लाहौर बुलाइ, पातिसाह सिउ लियो मिलाइ । सोलह सइ गुण (प)चासइ वास, वदि दसमी ने फागुण मास, युग प्रधान तेह पदवी देइ, फागुण सुदि तिम बीज लहेइ । मानसिंह श्री जी भाइयउ, आचारिज पदवी ठाइयउ, श्री जिनसिंह सरि द्यौनाम, करमचंद तिह खरच्या दाम ।
जुग प्रधान आचारिज बिवे, उदयवंत हुइयो संघ सवे । रचनाकाल, गुरुपरंपरा एवं रचना स्थान से सम्बद्ध पंक्तियाँ निम्नांकित हैं--
हरष प्रभु नामइ मुणिराइ, हीरकलश तसु सीस कहाइ, सीस तासु मुनि हेमाणंद, तिणि मनि आंणी अधिक आणंद, संवत सोलह से चउपनइ, कातिय प्रथम दिवाली दिनइ । गाम मदाणे वांन वरीस, वसुधा वर धारु मंत्रीस,
तास पाटि मंत्री गोपाल, दानपूण्य ते अधिक रसाल,
तिणि वयणे भोजप्रबंध, कहिउ संक्षेपे चउपइ बंध ।' दशार्णभद्र मास (५६ कड़ी सं० १६५८ फाल्गुन शुक्ल १५ रउवडीआ) रचनाकाल-सुगुरु आदेसइ विचरता सोल अठावन वास रे,
भवियण तणइ आग्रह करी,रहवडीआ रहिया चउमासरे। मास कातिग सुदी पूनमइ, हीरकलश सुगुरु सीसरे,
भास हेमाणंदमुनि कही, प्रवचनवचनजगीस रे । २ १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० २४०-२४३ (द्वितीय संस्करण) २. वही, भाग १ पृ० २८८-२८९ और भाग ३ पृ. ७८०-७८३ (प्रथम
संस्करण)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org