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________________ अन्त आदि मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास दशारणभद्र भास (गा० ५६०) सं० १६५७, रहवडिया नामक रचनायें की हैं ।' इनका संक्षिप्त विवरण आगे प्रस्तुत किया जा रहा है-- अंगफुरकण चौपाई' २२ कड़ी, सं० १६३६, दशरा। आदि श्री हरषप्रभु गुरुपय बंदि, जोडिस हूँ चौपइ छंद, नरनारी ना अंग उपंगा फुरै, तासु फलाफल चंग। संवत नंद भवण रस चंद, दसरा है दिन हेमानंद, कही बात फरकण तणी, आगम बाण जिसी गरुभणी।' वैतालपचीसी चौपाई सं० १६४६ इन्द्रोत्सव । प्रणम्य देवदेवं च वीतरागं सुराचितं, लोकानां च विनोदाय, करिष्येऽहं कथामिमां । नत्वा सरस्वती देवी श्वेताभरणभूषितां, पद्मपत्रविशालाक्षी नित्यं पदमासने स्थिता । इसमें विक्रमादित्य और वैताल से सम्बन्धित २५ कथायें हैं। २५वीं कथा के अन्त में कवि ने लिखा है इति वेताल पंचिसीय विक्रम नै वैताल, कथा कही पंचवीसमीहेमाणंद रसाल । इसका रवनाकाल अन्तिम प्रशस्ति में इस प्रकार दिया गया है-- इति श्रीय विक्रय वैताल ही कहि अह वात पचीस अ, तिण विघह सोलेसैं छपास इन्द्र उत्सव दीस ओ। गुरु हीरकलस पसाय करि नै हेमाणंद मुणि उत्तमपुरी, तिह रचीय वात विनोद नी ते सयल सज्जन सुषकरी । 'भोजचरित्र रास या चौपाई' (५ खंड १०२१ कड़ी, सं० १६५४ कार्तिक प्रथम दिवाली, भदाणा) आदि समरिय सरसति सुगुरुपय, वंदिय जिणचंदसूरि, कहिसु कथा हुं भोज नृप, आणी आणंद पूरि । इसमें धर्म पूर्वक दान का माहात्म्य भोजचरित्र के माध्यम से दिखाया गया है। १. अगरचन्द नाहटा परंपरा, पृ० ७५ २. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० २४३ (द्वितीय संस्करण) ३. वही भाग २ पृ० २४०-२४३ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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