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हेमसिद्धि -- आपने 'लावण्यसिद्धि पुहतणी गोतम्' और 'सोमसिद्धि निर्वाण गीतम्' नामक दो रचनायें की हैं । प्रथम गीत के अनुसार लावण्यसिद्धि वीकराज की पत्नी गूजर दे की कुक्षि से पैदा हुई थी और आप पुतणी रत्नसिद्धि की पट्टधर थी । द्वितीय गीत के अनुसार सोमसिद्धि नाहर गोत्रीय नरपाल की पत्नी सिंघा दे की कुक्षि से पैदा हुई थी। आपका बचपन का नाम संगारी था और आपका विवाह जेणासाह के पुत्र राजसी के साथ हुआ था । १८ वर्ष की अवस्था में वैराग्य हो गया और दीक्षोपरान्त आपका नाम सोमसिद्धि पड़ा । आपने लावण्यसिद्धि से विद्याभ्यास किया और उनकी पट्टधर थी । दोनों रचनायें ऐतिहासिक जैनकाव्य संग्रह में प्रकाशित हैं । उनकी कुछ पंक्तियाँ नमूने के रूप में प्रस्तुत हैं । लावण्यसिद्धि पुतणी गीतम् की प्रारम्भिक पंक्तियाँ देखिये
हेमानन्द
आदि जिणेसर पय नमी, समरी सरसति मात, गुण गाइ गुरुणी तणां त्रिभुवन मांहि विख्यात ।
इससे लगता है कि हेमसिद्धि लावण्यसिद्धि की शिष्या रही होंगी ।
संवत सोरहसइ वासट्टि पहुती, सरग मझारि,
जय जय रव सुरगण करई धन गुरुणी अवतार ।
दूसरी रचना सोमसिद्धि निर्वाण गौतम का आदि इस प्रकार है
सरस वचन मुझ आपिज्यो, सारद करि सुपसायो रे, सह गुरणी गुण गाइसुं मनधरि अधिक उमाहो रे ।
इन पंक्तियों से प्रतीत होता है कि सोमसिद्धि हेमसिद्धि की सहगुरुणी थीं । इस गीत की अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं
चन्द्र सूरज उपमा दीजइ (अधिक) आणंदो रे, पहुतीणी हेमसिद्धि इम भणइ, देज्यो परमाणंदो रे ।'
हेमानन्द - खरतरगच्छीय हर्षप्रभ के शिष्य हीरकलश के आप शिष्य थे । आपने अंग फुरकण चौपाई (सं० १६३९), वैताल पचीसी चौपs (सं० १६४६ ) भोज चरित्र चौपई (सं० १६५४ भदाणइ ) और
१. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृ० ४९
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