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________________ हेमविजय यपि ५९५ जैसे हेमराज बावनी, दूहा बावनी'। पता नहीं १८वीं शताब्दी के दोहा-शतक के लेखक और दूहावावनी के लेखक भी एक ही व्यक्ति हैं या दो भिन्न कवि हैं ? इन पांच हेमराजों में पाण्डे हेमराज सर्वप्रसिद्ध और विख्यात साहित्यकार हैं। शेष चार में से दो १७वीं और दो १८वीं शती के के लेखक हैं। १७वीं शताब्दी के हेमराजों से १८वीं शताब्दी के हेमराजों का पृथकत्व दिखाने के लिए ही उनका नामोल्लेख (१८वीं शताब्दी वाले) कर दिया है, पूर्ण विवरण १८वीं शताब्दी के साथ ही दिया जायेगा। हेमविजय गणि-आप तपागच्छीय कमल विजय के शिष्य थे । आपने अपने गुरु की स्तुति में 'पं. कमलविजय रास' लिखा है जो ऐतिहासिक रास संग्रह भाग ३ (संशोधक श्री विजयधर्मसूरि) पृ० १३७-१३८ पर छपा है। कमलविजय का सं० १६६१ आषाढ़ कृष्ण १२ को महेसाणां में स्वर्गवास हुआ था अतः यह रचना भी उसी वर्ष और उसी स्थान में की गई होगी। रास के अनुसार कमलविजय का जन्म मारवाड़ स्थित द्रोणाऊ नामक स्थान में गोविन्दशाह की पत्नी गोलम दे की कुक्षि से हआ था। इनके बचपन का नाम केल्हराज था। १२ वर्ष की अवस्था में पिता का स्वर्गवास हो जाने पर अमरविजय नामक साधु के उपदेश से इन्हें वैराग्य हुआ और दीक्षित हुए, सं० १६१४ में विजयदानसूरि ने इन्हें गान्धार में पण्डित पद प्रदान किया। यह रास कुल १०८ कड़ी का है। रास के अन्त में कवि ने लिखा हैजस वैराग्य बर वानगी वासना शरवर, सुविहित जती रिदय राखी। जस संवेग रस सरस सवि पाछिला, साधु गुणरासिनो हुउ साखी। रूपरेखा धरो असम समरस वरो साह, गोविंद सुत साधु सीहो। १. राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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