SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 613
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५९४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास १७वीं शताब्दी में दो अन्य हेमराज नामक कवियों का उल्लेख मिलता है। - हेमराज III-जीवराज के शिष्य थे। इन्होंने सं० १६०९ में दीपावली के दिन 'धन्नारास' को पूर्ण किया जिसकी अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं अ चरम जिनवर संघ जइकर भावसिउ गुरु गाइया, कर्मकठिन चूरिन्यान परि अनन्त सुख ते पाइया । जीवराज ऋषि शिष्य सुण मुनिवर हीमराज वषाणीइं, रचिउ तेह सान्निद्ध धरीय गुण बुद्धि हरष हियडइ आणीई। सुत नेहाली दिन दीवाली संवत सोल नवोतरइ, नरनारी समकितधारी गाइ भवसमुद्रलीलातरइ । आपकी दूसरी रचना 'बुद्धिरास' (गाथा ५५) सं० १६३० श्रावण में रची गई। - हेमराज IV-श्री देसाई ने हेमराज वाचक का उल्लेख किया है जो विजयकीति के शिष्य कहे गये हैं। इन्होंने सं० १६०९ में ही खरतरगच्छीय जिनमाणिक्य के समय विक्रमनगर में कालिकाचार्य की कथा लिखी । यद्यपि धन्नारास के लेखक और कालिकाचार्य कथा के लेखक हेमराज ही हैं और सं० १६०९ में ही दोनों रचनायें की गई इसलिए संभावना यह भी है कि ये दोनों एक ही व्यक्ति हों, बस गुरुपरम्परा को लेकर शंका है, यदि इसका समाधान हो जाय, तो ये दोनों लेखक एक हो सकते हैं। जो हो, ये दोनों १७वीं शताब्दी (विक्रमीय) के लेखक हैं। हेमराज V-एक अन्य हेमराज १८वीं शताब्दी में और हो गये हैं जो क्षेमकीर्ति शाखा के साधु लक्ष्मीकीर्ति के शिष्य थे। बाद में इन हेमराज का दीक्षोपरान्त नाम लक्ष्मीवल्लभ हो गया था। ये 'राजकवि' उपनाम से कवितायें करते थे। इनकी भी अनेक रचनायें उपलब्ध हैं १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० २०२, भाग ३ पृ० ६७४ (प्रथम संस्करण) और भाग २ पृ० ४४-४५ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy