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________________ हेमराज ५९३ नगर आगरे में बसे, कौरपाल सज्ञान, तस निमित्त कवि हेम ने, किए कवित परिमान ।' (विक्रम) १७वीं शताब्दी में दिगम्बरों और श्वेताम्बरों में परस्पर विवाद हुआ। इस सिलसिले में यशोविजय उपाध्याय ने 'चौरासी दिगपट बोल' लिखा था। पांडे हेमराज ने उसी के प्रत्युत्तर में 'चौरासी बोल विसंवाद' की रचना आगरा में की थी। महाकवि दौलतराम जब आगरा गये थे तब उनकी भेंट पाण्डे हेमराज से हुई थी और उन्होंने इनकी प्रशंसा में लिखा-- हेमराज साधर्मी भलें, जिनवच मानि असुभ दलमल, अध्यातम चर्चा निति कर, प्रभु के चरन सदा उर धरै । गद्य में आपने प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नयचक्र और गोम्मटसार पर बालावबोध लिखे। इनकी गद्य शैली पर आगरे की भाषाशैली के साथ पंडिताऊपन का प्रभाव भी दिखाई देता है, यथा-- धर्म द्रव्य सदा अविनासी टंकोत्कीर्ण वस्तु है । यद्यपि अपणे अगुर लघु गुणनि करि षटगुणी हानि वृद्धि रूप परिणवै है। परिणाम करि उत्पाद व्यय संयुक्त है तथापि अपने ध्रौव्य स्वरूप सो चलता नाही, द्रव्य तिसही नाम है जो उपजे विनस थिर रहै ।"२ आप गद्य साहित्य के लोकप्रिय लेखक थे, प्रवचनसार और पंचास्तिकाय की भाषाटीकायें स्वाध्याय प्रेमियों में बहुत लोकप्रिय रही हैं। हेमराज II--वि० १८वीं शताब्दी में एक हेमराज नामक भिन्न कवि हो गये जिन्होंने सं० १७२५ में 'दोहाशतक' की रचना की है। इनका जन्म सांगानेर में हआ था। ये आगरावासी हेमराज से भिन्न हैं। इन्होंने पांडे हेमराजकृत 'प्रवचनसार' का पद्यानुवाद किया है। इसलिए प्रवचनसार का कर्ता समझ कर कई बार इन दोनों को एक मानने का भ्रम भी हो जाता है। इन दोनों में रचनाकाल का अन्तर भी बहुत मामूली है। १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १०९७ ८९ (प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ० ३४६ (द्वितीय संस्करण )। २. डा० हुकुमचन्द भारिल्ल--'राजस्थानी गद्य साहित्यकार' नामक लेख, राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २४८ पर संकलित । ३. राजस्थानी जैन माहित्य पृ० २१६ (गंगाराम गर्ग का लेख) ३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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