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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद इतिहास समरुं सरसति सांमिणी जास पसाई कवि राजहंस रथ रूढ़, मोटाजे (होता) मूढ़ हुआ 1 इसमें भी कवि ने अपने को पद्मराज वाचक का ही शिष्य बताया है ५९२ पदमराज वाचक सुपसाइ, पद्मचरित्र ग्रही मन मांहि, हेमसूरि इम जंपइ बात, त्रीजा सरग तणो अवदात ।' अन्तिम अर्थात् सातवें सर्ग की कुछ पंक्तियाँ नमूने के रूप में उद्धृत हैं- सीताराम तणउं निरवांण, पुण्ययोगि चडीउ परिमाण, सीता पुहंती सुष सुं सरग, अवतरइ हुइ सप्तम् सर्ग | पूनिमगछ गिरुउ गणधार, श्री देवतिलक सूरीसर सार, तस पटि न्यांनतिलक सूरीस, जपतां, पूजइ सयल जगीस, तास सीस सूरीसर सार, हेमरत्न इम कहइ विचार, सील तणइ फल सीताचरित्र, जे सुणतां हुइ पुण्य पवित्र । सीता चरित्र और गोरा बादल कथा आपकी प्रसिद्धि की दो आधारभूत रचनायें हैं । पद्मिनी के शील और गोरा बादल के स्वामी धर्म से संबंधित तथा चित्तौड़ की एक विख्यात ऐतिहासिक घटना और उससे सम्बन्धित दो महान् वीरों पर आधारित होने के कारण गोरा बादल को पर्याप्त लोक-प्रसिद्धि मिली। सीता चरित्र तो पहले से ही अतिशय प्रचलित और लोकप्रिय था, इसलिए इस पर आधारित रचना को प्रसिद्धि तो स्वयं ही प्राप्त होनी थी । कवि ने इन दोनों चरित्रों का चित्रण भी सुन्दर ढंग से किया है । हेमराज - वि० १७वीं और १८वीं शताब्दी में पाँच हेमराज मिलते हैं, जिनमें परस्पर कुछ सम्बन्ध हैं और कुछ साहित्यकारों ने इनके भ्रमपूर्ण विवरण दिए हैं । इनमें पांडे हेमराज बहुत प्रसिद्ध हैं अतः सर्वप्रथम उनका विवरण दिया जा रहा है पांडे हेमराज I- - आप आगरा में रहते थे । इन्होंने महाकवि बनारसी दास के मित्र कौरपाल के निमित्त 'चौरासीबोल विसंवाद* लिखा था; यथा १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १७ (द्वितीय संस्करण) २ . वही भाग २ पृ० १८ ( द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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