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________________ हेमरत्नसूरि ५९१ पदमराज वाचक परधान, पुहवी प्रगट सकल गुणवान । तास सीस मनरंगै घणे, हेमरतन वाचक इम भणे ।' इन पंक्तियों से स्पष्ट है कि आप पूर्णिमागच्छ के देवतिलक की परम्परा में पद्मराज वाचक के शिष्य थे। रचनाकाल 'संवत सोलह सै सैताल, श्रावण सुदिपांचिमासुविशाल' कहा गया है। यह रचना भामाशाह के अनुज तारा चंद्र के आग्रह पर की गई। शीलावती और लीलावती चौपइ संभवतः एक ही रचना के दो नाम हैं। इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है कि उसका अर्थ सं० १६०३ और १६७३ दोनों लग जाता है, यथा संवतसोल त्रिरोत्तरे पाली नयर मझारि, सीलकथा सांची रची प्रवचन वचन विचार । इसकी गुरुपरम्परा में ज्ञान तिलक का नाम दिया है, यथा पूनिमगछपतिगुणनिलो श्री न्यानतिलकसूरीस, जस पद पंकज सेवतां पूज्ये सकल जगीस । तस पयपंकज सर सम श्री हेमरतन सीद, सीलकथा तिणिअकही प्रतयो जां रविचंद । इसमें ज्ञानतिलक और हेमरत्न के बीच पद्मराज का नाम नहीं है। महीपाल चौपई--गाथा सं० ६९६, सं० १६३६, इसका उद्धरण उपलब्ध नहीं है । 'अमरकुमार चौपई' की रचना आपने सं० १६३८ में बीकानेर के प्रसिद्ध मंत्री कर्मचन्द बच्छावत के आग्रह पर की थी। इसका भी विवरण-उद्धरण अप्राप्त है। सीता चरित्र आपकी दूसरी प्रसिद्ध रचना है । इसमें सात सर्ग हैं। इसमें दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग किया गया है। इसमें राम और सीता को भी जैन धर्म में दीक्षित कराया गया है। प्रति अपूर्ण होने से इसका रचनाकाल एवं अन्य विवरण नहीं प्राप्त हो सका है। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियां इस प्रकार हैं-- श्री रिसहेसर पढम जिण सोलम संति जिणंद, पास जिणंद (महावीर ने) नमुं अधिक आणंद । १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १३-१८ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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