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________________ हीरो ง हीरो -- विजयसेन सूरि के श्रावक शिष्य हीरो भी हीरानन्द संघवी हो सकते हैं । इनकी एक रचना धर्मबुद्धिरास अथवा उपदेश रास उपलब्ध है । १७३ कड़ी की यह कृति सं० १६६४ में नवलखा में लिखी गई । जै० गु० क० भाग १ पृ० ४६७, भाग ३ पृ० ९३९-४० पर भी देसाई ने इस रचना का कर्त्ता हीरानंद को माना था, लेकिन नवीन संस्करण के संपादक श्री जयन्त कोठारी हीरो और हीरानंद को एक मानने में कठिनाई का अनुभव करते हैं और उन्होंने इस रचना को हीरो के नाम से अलग दर्शाया है । यह रचना भीमसिंह माणक द्वारा जिनदास कृत व्यापारी रास के साथ प्रकाशित की गई है । इसमें लेखक और रचना काल का विवरण इन पंक्तियों में दिया गया है- सोल चोसिठा वर्ष महापर्व तेणि रास संपूरण नीयनो ओ, नवलखा नयरि मझारि सुविधि पसाउलि हरखिं हीरो वीनवइ अ । २ गुरुपरंपरा -- अवरत जो सविदंद तपगच्छ आदरो अवधि किसी दीसइ नहि ओ, जगगुरु विरुद सवाइ साहिब सहु नमि विजयसेनसूरि दीपता ओ । कवि ने इसे 'धर्म बुद्धि रास' कहा है, यथा हुं विजाणुं शास्त्र बुद्धि घणी नहि 'धर्मबुद्धि रास' मिकर्मो अ, भणतां सुणतां रास संपत्ति बहु मिलइ मनवंछित सघलां फलइ ओ । इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है- - ५८९ सकल सुमति आपो मुझ मात, सरसति सामिणि जग विख्यात, छती वाचनि मांगइ कोय, ना कहिवानी नीति न होय । यदि हीरो और संघवी हीरानन्द एक ही व्यक्ति हों तो हीरानन्द मुकीम एक श्रेष्ठ कवि भी सिद्ध होंगे अन्यथा उनकी एक ही रचना शेष बचेगी । इस सम्बन्ध में विशेष शोध की अपेक्षा है । १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ९० (द्वितीय संस्करण ) २ . वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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